Thursday, April 18, 2019

देशभक्ति कहानी --- *चाणक्य*


       
“बेटा, आँखों पर काले निशान और गहरे जख्म ! तू ठीक तो है न?”

“जी बाबूजी , आप अधिक चिंता न करें |”

“ चिंता तो बहुत हो गई थी...जब तुझे दुश्मन ने एकाएक बंदी बना लिया | भरोसा नहीं हो रहा था कि तुम्हें देख भी पाउँगा | पर... भगवान का लाख-लाख शुक्र,  दुश्मन के चंगुल से छूटकर तू वापस घर आ गया | तेरी सलामती की खबर सुनने के लिए हमलोग सभी यहाँ पिछले चौबीस घंटों से टीवी के आगे चिपके बैठे हैं | न किसी को खाने का होश था और न सोने का ! दुश्मन के घर से जिंदा इसतरह लौटकर आना एक ईश्वरीय चमत्कार ही है | देख, तू अब घर आ गया है, जबतक जख्म नहीं भर जाता, घर में अच्छे से आराम कर |”

 “ जख्म तो उस दिन भरेगा बाबूजी जिस दिन दुश्मन से अपना बदला ले लूँगा | मुझे चैन कहाँ है... जल्द से सरहद पर लौटना है | एक जंग बाहर और एक मन में छिड़ी हुई है |आपने मुझे बचपन में चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, महाराणा प्रताप ,तिलक आदि अनेक वीरों की गाथा सुनाया करते थे | इनलोगों ने राष्ट्र प्रेम के खातिर अपना जीवन दांव पर लगा दिया | तभी तो आज हम आजाद भारत में सांस ले रहे हैं | बाबूजी यदि हम इनकी शहादत के नक्शेकदम पर नहीं चलेंगे तो हमारा देश फिर से गुलाम हो जाएगा , दुश्मन हरवक्त घात लगाये बैठे रहता है | अपने राष्ट्र की क्षति कितनी पीड़ादायक होती है यह हमें कश्मीर की वर्तमान दुर्दशा और चीनी आक्रमण के स्मरण मात्र से अनुभव हो जाता है |”


“बेटा, आज यह सब तेरे मुँह से सुनकर मैं अपने को गर्वान्वित महसूस कर रहा हूँ  | तुम भारत माँ के सच्चे सपूत हो | तुम्हारा नाम चाणक्य रखना, सच में सार्थक लग रहा है |”

“ ऐसा क्यूँ... ? मैं नहीं समझा |”

 “बेटा ध्यान से सुनो..चाणक्य एक शिक्षक था | उसके पास सिमित धन था, पर... उसमें देशभक्ति की भावना बचपन से ही कूट-कूट कर भरी थी | वो सुदूर पश्चिम तक्षशिला से पूरब मगध में आकर , तत्कालीन शासक के अत्याचार के विरूद्ध अपना संगठन खड़ा किया था | जो बाद में ‘मौर्यवंश’ कहलाया | मौर्यवंश एक ऐसा संगठन था, जिसका शासक एक अनाम गोत्र का बालक... ‘चन्द्रगुप्त’ बन गया | चन्द्रगुप्त कौन थे ?उनके माता-पिता का क्या नाम था ? यह आजतक अज्ञात है |

मौर्यवंश के शासन के पहले भारत में कोई अखिल भारतीय शासन नहीं था | भारत पहले अलग-अलग सोलह महाजनपदों में बंटा था ...जिसका बागडोर प्रांतीय सरकार के हाथों में थी | 

मौर्यवंश ऐसा संगठन बना जिसने भारत को पहलीवार एक प्रशासनिक सूत्र में बाँध दिया | इन सब के पीछे, मात्र ...चाणक्य की अटूट राष्ट्र भक्ति की भावना थी | ठीक वैसी ही झलक आज मुझे तुझमें दिख रही है |

जिस भारत माँ का लाल तुझ जैसा हो...उस माँ को कोई टुकड़ों में नहीं बाँट सकता और न ही उसे जंजीरों में जकड़ने का कोई फिर से दुस्साहस कर सकता !

                    “माता भूमिः पुत्रोहं पर्थिव्याः”


                      मिन्नी मिश्रा /पटना
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