Tuesday, April 11, 2023

समीक्षा मेरी कलम से

 


               * बिट्टो*
     लेखक -निरंजन धुलेकर 
        पृष्ठ संख्या : 128
        मूल्य -250 /रूपए 
          आराध्या प्रकाशन 

नामचीन साहित्यकार निरंजन धुलेकर के चमत्कृत कर देने वाले साहित्य से हम सभी परिचित हैं।65 खण्डों में विभक्त यह उपन्यास निरंजन धुलेकर सर की पाँचवी कृति है ! 

इसका आकर्षक आवरण चित्र हमें बहुत कुछ सोचने पर  विवश करता है। उपन्यास का नाम "बिट्टो" बेहद प्रभावशाली लगा, ऐसा लगा जैसे पुस्तक की नायिका से प्यार हो गया। बिट्टो, एक  साधारण परिवार में जन्मी मध्यमवर्गीय लड़की की कहानी है। लड़की  के रहन- सहन, शिक्षा, संस्कार ... इन सभी मुद्दों को लेखक ‌ने बहुत बारीकी से उकेरा है,जो कि काबिलेगौर है ।बिट्टो के जन्म लेने के बाद घरवालों ने उसका दिल से स्वागत नहीं किया,बल्कि हरी इच्छा, मतलब प्रभु की इच्छा कहकर उसे स्वीकारा ।जन्म लेने के साथ ही लड़की की अवहेलना शुरू हो जाती है। उपरोक्त पंक्ति इस बात की पुष्टि  करती है। बाल्यावस्था को लांघ कर बिट्टो किशोरी से तरूणी बनती है ,इस दौरान नायिका के शरीर और मन  में हुए परिवर्तन का पुस्तक में सटीक चित्रण किया गया है। एक अहम बात... एक तरूणी के मनोभावों को लेखक ने हूबहू उतार कर रख दिया , वाकई  पढ़कर मुझे  बहुत आश्चर्य हुआ और प्रशंसनीय भी लगा ।उपन्यास को पढ़ते समय मैं लगभग तीस साल पीछे चली गई। सचमुच उस समय सब कुछ ऐसा ही होता था, जैसा लेखक ‌ने वर्णित किया है। भाई- बहन का प्यार और इला के व्यक्तित्व ने मुझे बहुत प्रभावित किया।

अंत में कहना चाहुँगी कि यह उपन्यास मध्यम वर्गीय परिवार की मानसिकता का चित्रण करता  पठनीय एवं संग्रहणीय है। ऐसा मेरा पूर्ण विश्वास है, बिट्टो की सहजता एवं सरलता सभी के हृदय में जगह बना कर ही रहेगी ।

"स्त्री को खुद का जीवन खुद सँवारना पड़ता है,घर समाज की मर्यादा की लक्ष्मण रेखा के पार सदैव उसे एक रावण खड़ा मिलेगा!"पुस्तक की यह पंक्ति मुझे सबसे अच्छी लगी।

सर, आपकी कलम निरंतर चलती रहे, अनेकानेक हार्दिक शुभकामनाओं के संग सादर प्रणाम 
 🙏🙏

मिन्नी मिश्रा, पटना 
दिनांक -10.4.2023

Thursday, January 12, 2023

समीक्षा मेरी कलम से

 समीक्षा---

*ये आप ही के किस्से हैं*

    लेखक – कुमारसम्भव जोशी 

       पृष्ठ संख्या- 172

           मूल्य-450 रुपये 

प्रकाशक -- दिशा प्रकाशन,138/16, त्रिनगर ,दिल्ली 


डॉ. कुमारसम्भव जोशी नामचीन लघुकथाकार ही नहीं, बहुत अच्छे समीक्षक भी हैं। लघुकथा विधा जगत में डॉ. कुमारसम्भव जोशी सर किसी परिचय के मुहताज नहीं हैं|सर की यह प्रथम लघुकथा संग्रह है |

'ये आप ही के किस्से हैं' ...यह पुस्तक जोशी सर ने बहुत पहले मुझे उपहार स्वरूप भेजी थी | सबसे पहले इस अनुपम कृति के लिए जोशी सर को बहुत-बहुत बधाई ।


 सुंदर आवरण पृष्ठ ,प्रिंटिंग क्वालिटी बहुत बढ़िया |पुस्तक के नाम को सार्थक करती 103 लघुकथाओं का यह अनुपम संग्रह है |सभी लघुकथाएँ एक से बढ़कर एक मोती, माणिक्य समान हैं |सभी लघुकथाएँ समाज में व्याप्त विसंगतियों, विडम्बनाओं से न सिर्फ हमें अवगत करवाती हैं ,बल्कि दिमाग को आंदोलित कर पाठक को सोचने के लिए विवश भी करती हैं।इन लघुकथाओं को पढकर सच में ऐसा लगता है कि ये तो मेरे ही क़िस्से हैं| 


'आपका ही मैं’.... में जोशी सर लिखते हैं, "सिर्फ दिल का बोझ हल्का करने के लिए नाजुक पन्नों पर बोझ डाल देना लेखन नहीं है |यह एक महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी है,जो लेखक को अपने समाज और अपनी आत्मा के प्रति पूरी वफा से निभानी होती है |” 


पुस्तक की पहली लघुकथा 'रक्षासूत्र' ...राखी की महत्ता को बताती प्यारी-सी लघुकथा है, 'सदुपयोग' -बेहद मर्मस्पर्शी लघुकथा है, जबरदस्त पंच, अंदर तक झकझोरने वाली है , पढ़कर मैं स्तब्ध रह गई | 'वाई क्रोमोसोम' बेटे से बढ़िया बहू हो सकती है,इस लघुकथा से बढ़िया इसका दूसरा उदाहरण कोई हो ही नहीं सकता है | लेकिन शीर्षक लघुकथा के साथ बहुत अधिक तालमेल नहीं बैठा रहा है,ऐसा मुझे लगा | 'अब बुद्ध मुसकुराते नहीं ' छोटी लेकिन सशक्त लघुकथा है | 'कर्मप्रारब्ध'शिव-पार्वती के सुंदर संवाद से रची गई, कन्या भ्रूणहत्या पर लिखी यह उत्कृष्ट लघुकथा है | 'दोराहे पर खड़ा आदमी' इस लघुकथा की पंचपंक्ति का भावार्थ मैं ठीक से समझ नहीं पाई | ‘11.2‘ कमाल की लघुकथा है, सहनशील पत्नी की सहनशक्ति जब समाप्त हो जाती है तो उसे चौखट लांघते  देर नहीं  लगती है| 'अवचेतन' और 'बोझ' मनोवैज्ञानिक लघुकथा है | हमारे इस पुरुष प्रधान समाज के लिए 'मर्दाना कमजोरी'  पठनीय  लघुकथा है | 'मेमसाब' कामवाली के ऊपर लिखी गई शानदार लघुकथा है | "बच्चे ठठाकर हँस पड़े तू गलत सोच रही है छुटकी | मेमसाब ऐसे थोड़े ही करती है |” यह पंक्ति स्तब्ध करने वाली है,लाजवाब सम्प्रेषण |'पिता'  उम्दा लघुकथा, इसमें विधुर पिता को अपनी दुधमुंही बच्ची पर आखिर कैसे प्यार उमड़ पड़ता है ,उसीका सजीव , मर्मस्पर्शी चित्रण हुआ है | 'बाजार'  एवं 'भेड़िया आया' शीर्षक कोपरिभाषित करती  गजब की लघुकथाएँ हैं,शानदार पंच | 'शब्द ब्रह्म'  शब्द की महत्ता को बताती यह अलभ्य लघुकथा है | इस लघुकथा में संस्कृत श्लोक का पुट... जहाँ सभी युगों को याद दिलाती है, वहीं लघुकथा विधा को उच्चता भी प्रदान करती है | 'शयनेषु रम्भा' पति-पत्नी के बीच शारीरिक सम्बन्धों को लेकर लिखी गई... रोंगटे खड़े कर देने वाली अनूठी लघुकथा है,जबरदस्त पंच | 'माँ की माँ' सरोगेट मदर के ऊपर रची गई अनोखी, सराहनीय लघुकथा है , इसमें एक माँ अपनी बेटी को माँ कहलाने के लिए यह काम करती है | 'हमारी बहुरिया'  बहुत अच्छी लघुकथा है| इसकी अंतिम पंक्ति-- "सास- ससुर ने बहूरिया को ....उसे चूम ही लेता |” मेरी समझ से अगर यह पंक्ति नहीं भी होता तो काम चल सकता था |'अंतर्द्वंद' कन्या भ्रूणहत्या पर लिखी गई शानदार लघुकथा है, लाजवाब चित्रण, हृदयस्पर्शी पंच|’हारा हुआ मैच' इस लघुकथा के अंत को मैं ठीक से समझ नहीं पायी|’सखा त्व्मेव' अच्छीलघुकथा ,पिता-पुत्री की बीच का संवाद बहुत ही तर्कसंगत,  बेहद मर्मस्पर्शी पंच | 'अछूत’, 'योगदान’, 'एक्सट्रा क्लासेज'  'गुब्बारे' ,’खाली हाथ’....बहुत ही सुंदर, भावपूर्ण, गंभीर लघुकथाएं हैं|  ‘दिल तो है दिल' गजब की प्रेम गाथा ...पढ़कर बहुत अच्छा लगा | ’पापा'  अति संवेदनशील , प्रेरक ,उत्कृष्ट लघुकथा है | जिस घर में पति पत्नी को पीटते हैं ,उनके बच्चों पर इसका कितना बुरा असर पड़ता है, उसीका मार्मिक चित्रण किया गया है। 'प्रीकॉशन'...बेहद सशक्तलघुकथा ...ऐसी उम्दा सोच के लिए लेखक को दिल से साधुवाद |’सफ़ेद' मर्म को छूती अंदर तक झकझोरने वाली लघुकथा है | 'खौफ' ,'ढाई आखर' सराहनीय लघुकथा है , 'मन्नत' ...उम्दा प्रस्तुति, जबरदस्त पंच| 'छेदवाली बनियान' सोचने को विवश करतीभावपूर्ण लघुकथा। 'कु-पिता'...अप्रतिम सृजन | कुत्ते की वफादारी और बेटे कीअहशानफरामोशी पढ़कर दिल भर आया  |  'शुभ दिन' स्त्री मन की पीड़ा को उकेरती संवेदनशील लघुकथा है |’रिश्ता'  यह लघुकथा मुझे बहुत अच्छी लगी ,सारे दृश्य चलचित्र की तरह आँखों के सामने सजीव हो उठे | ‘बेटे का बाप' ...बूढ़े पिता की दुर्दशा पढ़कर किसी का पत्थर दिल भी पिघल जाय ! उम्दा लघुकथा, हृदयविदारक पंच |

'लैदर जैकेट',  'पवित्रा'  अति संवेदनशील लघुकथाएं , शानदार शीर्षक | पुस्तक की अंतिम लघुकथा... 'इंतजार' यह बेमिशाल, अप्रतिम लघुकथा है |  विदेश में रह रहे बेटे की आस में एक पिता की किस तरह मृत्यु हो जाती है, गजब का मार्मिक चित्रण हुआ है, लेखक को इस असाधारण सृजन के लिए हृदय से साधुवाद |


अंत में कहना चहूँगी कि आ.जोशी सर ने अपनी लघुकथाओं में यथार्थ के रंग को न सिर्फ बेहतर ढंग से उकेरा है, बल्कि सुंदर शैली से उसे संवेदना के शिखर तक पहुँचाया भी है, जो रोचकता के साथ हम पाठक के दिलोदिमाग को झंकृत करने में पूर्ण रूपेण सफल है | 

मुझे पूर्ण विश्वास है कि यह लघुकथा संग्रह भविष्य में मील का पत्थर साबीत होगा। प्रथम लघुकथा संग्रह के लिए   DrKumar Sambhav Joshi सर को पुनः बहुत-बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनाएँ |

                                                  त्रुटियों के लिए क्षमा सहित 🙏💐

    मिन्नी मिश्रा ,पटना

     दिनांक--   26.12.2022

(आप सभी गुणीजन अपने को टैग ही समझिए।सादर🙏)

समीक्षा मेरी कलम से

 समीक्षा ---

               

          *सुर्ख़ लाल रंग*                                                 

       लेखक - विनय कुमार                                      

    मूल्य - 499/-(सजिल्द)

       अगोरा प्रकाशन                                     

        पृष्ठ संख्या -120


            

 सबसे पहले  पुस्तक उपहार स्वरूप भेजने के लिए आ. विनय सर का हृदय तल से आभार।🙏 

 

 ' सुर्ख लाल रंग'...अपने  नाम के अनुरूप  इसका आवरण पृष्ठ रक्ताभ लिए अनेक भावों को समेटे हुये बहुत ही आकर्षक है।यह पुस्तक चौदह कहानियों का अनुपम संग्रह है।इसकी प्रिंटिंग क्वालिटी बहुत अच्छी है। इन कहानियों की जो बात मुझे बेहद अच्छी लगी वह है- लेखक ‌ने सभी कहानियों के प्रसंगों का बड़ी सहजता से चित्रण किया है। यथार्थ को सहजता से लिख देना आसान नहीं होता है, वाकई यह लेखक की विशेषता कही जा सकती है ।


 सभी कहानियाँ ग्रामीण परिवेश से जुड़ी हुईं हैं ।इन कहानियों के कथानक तथा शीर्षक दोनों उत्कृष्ट हैं । इन कहानियों से मिट्टी की सौंधी खुशबू आती है । 'सुर्ख लाल रंग' पुस्तक की  सबसे पहली, मर्मस्पर्शी कहानी है । यह एक ऐसे गाँव की कहानी है जहाँ सांप्रदायिक भेद-भाव नहीं था, हिन्दू- मुस्लिम सगे भाई की तरह मिलकर एक साथ रहते थे, ईद, दीपावली मनाते थे।  लेकिन, किसी कारणवश सांप्रदायिक दंगे भड़क जाने से वहाँ का माहौल बिगड़ गया ,लोग गाँव से पलायन करने लगे | कहानी का अंत बेहद मार्मिक है, पड़ोसी पर विश्वास करने के कारण रज़्ज्ब दंगे का शिकार हो गया ! ’असली परिवर्तन' एक आदिवासी गाँव की कहानी है , जहाँ एक जुझारू,ईमानदार बैंक पदाधिकारी ने दिखला दिया कि मेहनत और लगन के बल पर  सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में भी विकास संभव है |  'आत्मनिर्भरता' इस कहानी को पढ़कर ऐसा लगा कि यह मेरे खुद के घर की कहानी है।क्योंकि मेरे पिताजी भी ऐसे ही स्वाभिमानी स्वभाव के व्यक्ति थे , वह सेवानिवृत्त होने के बाद भी आत्मनिर्भर रहना पसंद करते थे । 'इंतजार' एक कुरूप, हिम्मती लड़की की दिल दहलाने वाली मर्मस्पर्शी कथा है ।'उदास चाँदनी'  प्रेम की उम्दा कहानी है , कहानी पढ़ती गई.... और डूबती गई...बीच में उतार-चढ़ाव बहुत आए ,लेकिन अंत तक रोचकता बनी रही । ‘चन्नर' बेहद हृदयस्पर्शी कहानी है । इस कहानी के  बीच में लेखक ने सही लिखा है , "कमोबेश दुनिया के हर समाज में ऐसे लोग हाशिये पर ही रह रहे हैं ,जिन्हें न तो वर्तमान में जगह मिलती है और न ही भविष्य में । 'जीत का जश्न'  गाँव के चुनावी माहौल में कोरोना महामारी ने किस तरह पाँव पसारा ,जिससे बेचू के अलावे अनेक लोगों को जान गवानी पड़ी ...इसका अद्भुत,सटीक वर्णन इस कहानी में पढ़ने को मिला । 'जुनैद' कश्मीरी विद्यार्थी की संघर्ष भरी दास्तान है।  ’फिर चाँद ने निकालना छोड़ दिया ' यह मन को द्रवित करने वाली अनूठी कहानी है । 'मुर्दा परम्पराएँ ' इस कहानी को पढ़ने के बाद मृत्यू और  दाहसंस्कार के सारे दृश्य मेरे आँखों का सामने साकार हो गए !  समाज में यह  कैसी विडम्बना है कि दयनीय स्थिति होने के बावजूद परिवार वालों के चलते जोखू को सारे कर्मकांड' विधिवत करने पड़े !

‘यह बस होना था'... बहुत ही मार्मिक कहानी है । जहाँ सचिन की मौत होने से रूह काँप गए ,वहीं राजीव और वैभव की दोस्ती देखकर मुझे गर्व महसूस हुआ । 


इन सभी कहानियों को पढ़ने के बाद अंत में मैं यह कहना चाहूँगी कि इनमें लेखक के कोमल हृदय की पीड़ा और छटपटाहट को आप अच्छी तरह महसूस कर सकते हैं । सभी कहानियाँ मध्यम एवं निम्न मध्यम वर्गीय परिवार से हैं , जो लेखक की अतिसंवेदनशीलता को बखूबी दर्शाते हैं | 


इस सुंदर कृति के लिए विनय कुमार सर को बहुत-बहुत बधाई एवं उज्ज्वल भविष्य की असीम शुभकामनायें ।💐💐💐


मिन्नी मिश्रा ,पटना 

दिनांक--11.1.2023