समीक्षा---
*ये आप ही के किस्से हैं*
लेखक – कुमारसम्भव जोशी
पृष्ठ संख्या- 172
मूल्य-450 रुपये
प्रकाशक -- दिशा प्रकाशन,138/16, त्रिनगर ,दिल्ली
डॉ. कुमारसम्भव जोशी नामचीन लघुकथाकार ही नहीं, बहुत अच्छे समीक्षक भी हैं। लघुकथा विधा जगत में डॉ. कुमारसम्भव जोशी सर किसी परिचय के मुहताज नहीं हैं|सर की यह प्रथम लघुकथा संग्रह है |
'ये आप ही के किस्से हैं' ...यह पुस्तक जोशी सर ने बहुत पहले मुझे उपहार स्वरूप भेजी थी | सबसे पहले इस अनुपम कृति के लिए जोशी सर को बहुत-बहुत बधाई ।
सुंदर आवरण पृष्ठ ,प्रिंटिंग क्वालिटी बहुत बढ़िया |पुस्तक के नाम को सार्थक करती 103 लघुकथाओं का यह अनुपम संग्रह है |सभी लघुकथाएँ एक से बढ़कर एक मोती, माणिक्य समान हैं |सभी लघुकथाएँ समाज में व्याप्त विसंगतियों, विडम्बनाओं से न सिर्फ हमें अवगत करवाती हैं ,बल्कि दिमाग को आंदोलित कर पाठक को सोचने के लिए विवश भी करती हैं।इन लघुकथाओं को पढकर सच में ऐसा लगता है कि ये तो मेरे ही क़िस्से हैं|
'आपका ही मैं’.... में जोशी सर लिखते हैं, "सिर्फ दिल का बोझ हल्का करने के लिए नाजुक पन्नों पर बोझ डाल देना लेखन नहीं है |यह एक महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी है,जो लेखक को अपने समाज और अपनी आत्मा के प्रति पूरी वफा से निभानी होती है |”
पुस्तक की पहली लघुकथा 'रक्षासूत्र' ...राखी की महत्ता को बताती प्यारी-सी लघुकथा है, 'सदुपयोग' -बेहद मर्मस्पर्शी लघुकथा है, जबरदस्त पंच, अंदर तक झकझोरने वाली है , पढ़कर मैं स्तब्ध रह गई | 'वाई क्रोमोसोम' बेटे से बढ़िया बहू हो सकती है,इस लघुकथा से बढ़िया इसका दूसरा उदाहरण कोई हो ही नहीं सकता है | लेकिन शीर्षक लघुकथा के साथ बहुत अधिक तालमेल नहीं बैठा रहा है,ऐसा मुझे लगा | 'अब बुद्ध मुसकुराते नहीं ' छोटी लेकिन सशक्त लघुकथा है | 'कर्मप्रारब्ध'शिव-पार्वती के सुंदर संवाद से रची गई, कन्या भ्रूणहत्या पर लिखी यह उत्कृष्ट लघुकथा है | 'दोराहे पर खड़ा आदमी' इस लघुकथा की पंचपंक्ति का भावार्थ मैं ठीक से समझ नहीं पाई | ‘11.2‘ कमाल की लघुकथा है, सहनशील पत्नी की सहनशक्ति जब समाप्त हो जाती है तो उसे चौखट लांघते देर नहीं लगती है| 'अवचेतन' और 'बोझ' मनोवैज्ञानिक लघुकथा है | हमारे इस पुरुष प्रधान समाज के लिए 'मर्दाना कमजोरी' पठनीय लघुकथा है | 'मेमसाब' कामवाली के ऊपर लिखी गई शानदार लघुकथा है | "बच्चे ठठाकर हँस पड़े तू गलत सोच रही है छुटकी | मेमसाब ऐसे थोड़े ही करती है |” यह पंक्ति स्तब्ध करने वाली है,लाजवाब सम्प्रेषण |'पिता' उम्दा लघुकथा, इसमें विधुर पिता को अपनी दुधमुंही बच्ची पर आखिर कैसे प्यार उमड़ पड़ता है ,उसीका सजीव , मर्मस्पर्शी चित्रण हुआ है | 'बाजार' एवं 'भेड़िया आया' शीर्षक कोपरिभाषित करती गजब की लघुकथाएँ हैं,शानदार पंच | 'शब्द ब्रह्म' शब्द की महत्ता को बताती यह अलभ्य लघुकथा है | इस लघुकथा में संस्कृत श्लोक का पुट... जहाँ सभी युगों को याद दिलाती है, वहीं लघुकथा विधा को उच्चता भी प्रदान करती है | 'शयनेषु रम्भा' पति-पत्नी के बीच शारीरिक सम्बन्धों को लेकर लिखी गई... रोंगटे खड़े कर देने वाली अनूठी लघुकथा है,जबरदस्त पंच | 'माँ की माँ' सरोगेट मदर के ऊपर रची गई अनोखी, सराहनीय लघुकथा है , इसमें एक माँ अपनी बेटी को माँ कहलाने के लिए यह काम करती है | 'हमारी बहुरिया' बहुत अच्छी लघुकथा है| इसकी अंतिम पंक्ति-- "सास- ससुर ने बहूरिया को ....उसे चूम ही लेता |” मेरी समझ से अगर यह पंक्ति नहीं भी होता तो काम चल सकता था |'अंतर्द्वंद' कन्या भ्रूणहत्या पर लिखी गई शानदार लघुकथा है, लाजवाब चित्रण, हृदयस्पर्शी पंच|’हारा हुआ मैच' इस लघुकथा के अंत को मैं ठीक से समझ नहीं पायी|’सखा त्व्मेव' अच्छीलघुकथा ,पिता-पुत्री की बीच का संवाद बहुत ही तर्कसंगत, बेहद मर्मस्पर्शी पंच | 'अछूत’, 'योगदान’, 'एक्सट्रा क्लासेज' 'गुब्बारे' ,’खाली हाथ’....बहुत ही सुंदर, भावपूर्ण, गंभीर लघुकथाएं हैं| ‘दिल तो है दिल' गजब की प्रेम गाथा ...पढ़कर बहुत अच्छा लगा | ’पापा' अति संवेदनशील , प्रेरक ,उत्कृष्ट लघुकथा है | जिस घर में पति पत्नी को पीटते हैं ,उनके बच्चों पर इसका कितना बुरा असर पड़ता है, उसीका मार्मिक चित्रण किया गया है। 'प्रीकॉशन'...बेहद सशक्तलघुकथा ...ऐसी उम्दा सोच के लिए लेखक को दिल से साधुवाद |’सफ़ेद' मर्म को छूती अंदर तक झकझोरने वाली लघुकथा है | 'खौफ' ,'ढाई आखर' सराहनीय लघुकथा है , 'मन्नत' ...उम्दा प्रस्तुति, जबरदस्त पंच| 'छेदवाली बनियान' सोचने को विवश करतीभावपूर्ण लघुकथा। 'कु-पिता'...अप्रतिम सृजन | कुत्ते की वफादारी और बेटे कीअहशानफरामोशी पढ़कर दिल भर आया | 'शुभ दिन' स्त्री मन की पीड़ा को उकेरती संवेदनशील लघुकथा है |’रिश्ता' यह लघुकथा मुझे बहुत अच्छी लगी ,सारे दृश्य चलचित्र की तरह आँखों के सामने सजीव हो उठे | ‘बेटे का बाप' ...बूढ़े पिता की दुर्दशा पढ़कर किसी का पत्थर दिल भी पिघल जाय ! उम्दा लघुकथा, हृदयविदारक पंच |
'लैदर जैकेट', 'पवित्रा' अति संवेदनशील लघुकथाएं , शानदार शीर्षक | पुस्तक की अंतिम लघुकथा... 'इंतजार' यह बेमिशाल, अप्रतिम लघुकथा है | विदेश में रह रहे बेटे की आस में एक पिता की किस तरह मृत्यु हो जाती है, गजब का मार्मिक चित्रण हुआ है, लेखक को इस असाधारण सृजन के लिए हृदय से साधुवाद |
अंत में कहना चहूँगी कि आ.जोशी सर ने अपनी लघुकथाओं में यथार्थ के रंग को न सिर्फ बेहतर ढंग से उकेरा है, बल्कि सुंदर शैली से उसे संवेदना के शिखर तक पहुँचाया भी है, जो रोचकता के साथ हम पाठक के दिलोदिमाग को झंकृत करने में पूर्ण रूपेण सफल है |
मुझे पूर्ण विश्वास है कि यह लघुकथा संग्रह भविष्य में मील का पत्थर साबीत होगा। प्रथम लघुकथा संग्रह के लिए DrKumar Sambhav Joshi सर को पुनः बहुत-बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनाएँ |
त्रुटियों के लिए क्षमा सहित 🙏💐
मिन्नी मिश्रा ,पटना
दिनांक-- 26.12.2022
(आप सभी गुणीजन अपने को टैग ही समझिए।सादर🙏)
No comments:
Post a Comment