* यादें जो दिल को सुकून पहुँचाती है *
लगभग चौंतीस साल पहले की बात है | मैं पति संग पूर्णिया (बिहार) किराए के एक छोटे से मकान में रहती थी | पति वहाँ सरकारी ऑफिस में पोस्टेड थे | उसी मकान में एक और किरायेदार, सोमेश बाबू (नाम बदला हुआ है) सपरिवार रहते थे | उनके परिवार में पाँच लोग --पति-पत्नी और तीन बच्चे थे |
हमारे विवाह का एक ही साल हुआ था | छोटी उम्र और तजुर्बा भी छोटा।नयी गृहस्थी थी मेरी। एक- एक चीज इकट्ठा करके गृहस्थी बसाना सीख रही थी मैं। नई गृहस्थी बसाने में पड़ोसी ने हमारी बहुत सहायता की थी | वे सभी लोग स्वभाव के बहुत मिलनसार थे | धीरे-धीरे हम दोनों के परिवार में बहुत अपनापन हो गया | हमलोग साथ मिलकर पर्व-त्योहार मनाते | इतना ही नहीं, हमारे बीच रूपये-पैसों से लेकर खाद्य पदार्थ का आदान-प्रदान भी हुआ करता था |
कुछ सालों बाद मेरी पहली संतान (बेटी) का जन्म देवघर (झारखंड) में हुआ | वहाँ मेरे माता-पिता रहते थे , मेरे पिताजी वहीं सरकारी सेवा में कार्यरत थे |
बेटी जब तीन महीनें की हो गई, तो उसे लेकर मैं पूर्णिया, पति के पास आ गई | सोमेश बाबू की पत्नी मेरे बेटी को बहुत प्यार करती थी | जब भी मैं घर के कामों में उलझी रहती ,तो बेटी को वो अपने घर ले जाया करती थी | मेरी बेटी घंटों उनके घर रहती | उन चंद घंटो में मेरे शारीर को बहुत आराम मिलता था | सच, छोटे बच्चे को संभालना बहुत ही कठिन कार्य है | खासकर, जब अकेले संभालना पड़े | गोद में लेकर उसे घुमाना , नैपकिन बदलना, दूध पिलाना, कपड़े धोना आदि .. अनगिनत काम!
चुकी, मेरे पति प्रशासनिक सेवा में कार्यरत थे | उनकी डयूटी बहुत कड़ी थी | अक्सर रात को भी उन्हें लॉ एंड आर्डर डयूटी में बाहर जाना पड़ता था |इसलिए चाहकर भी वो घर में समय नहीं दे पाते थे ! लेकिन ईश्वर की कृपा, जो पड़ोसी हमें मिले, वो वाकई बहुत मददगार थे | कभी कोई दिक्कत होता तो मैं उनलोगों को बताती। वो हमारी मदद करते। इसी तरह अच्छे से समय बीत रहा था।
एकदिन , आचानक मध्य रात्री में कॉलबेल बजी | उसकी तीव्र ध्वनी से हमारी निद्रा भंग हो गई | हड़बड़ाकर हमदोनों बिछावन से उठे और किवाड़ी के छेद से बाहर झांककर देखा | सोमेश बाबू को सामने खड़ा देख, चकित रह गये | इतनी रात को यहाँ?! झट दरवाजा खोलकर उन्हें अंदर बुलाया |
वह बहुत घबराए हुए दिख रहे थे | दुखी स्वर में बोले , “ चंदन ( बेटा) का हालत बहुत सीरियस है | उसे शीघ्र डॉक्टर के पास ले जाना है | लेकिन, जाने के लिए कोई सवारी नहीं मिल रही है | आपके पास स्कूटर है, मेरी मदद कीजिए |”
अविलम्ब , चंदन को देखने हमलोग उनके साथ उनके घर गये | वह हांफ रहा था ! उसके दिल की धड़कनें बहुत तेज चल रही थी | इतनी तेज कि जिस पलंग पर सोया था, वह हिल रहा था | उसके मुँह और नाक से खून का बहना जारी था | इतना खून निकला कि तकिया भींग गया ! बच्चे की ऐसी हालत देखकर हमलोग बुरी तरह घबरा गये | पता नहीं ! क्या होगा ?!
फौरन स्कूटर से सोमेश बाबू और चंदन को साथ में लेकर, ये पास वाले नर्सिंग होम चले गये | चंदन को रात भर गहन चिकित्सा कक्ष में रखा गया | इसीजी के साथ उसके कई अन्य टेस्ट भी हुए |
मैं भोर होने का इंतजार करती रही । भोर होते ही... चंदन की मम्मी के संग रिक्शे से हमलोग नर्सिंग होम पहुँच गये | तब तक चंदन को गहन चिकित्सा कक्ष से हटाकर जेनरल वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया था | वह शांत भाव से बेड पर लेटा था।हल्की सी मुस्कान उसके चेहरे पर तैर रही थी | उसे सही-सलामत देखकर कहीं से जान में जान आ गई | चलो, अब सब ठीक है।
लेकिन , डॉक्टर के प्रवेश करते ही माहौल गंभीर हो गया | डॉक्टर साहब ने चंदन के पापा को रिपोर्ट दिखलाते हुए कहा, “ चंदन के हार्ट का वाल्व खराब हो चुका है | यहाँ इसका इलाज संभव नहीं है। इसलिए इलाज के लिए एम्स रेफर कर रहा हूँ | जल्द से जल्द इसे ले जाइए |” डॉक्टर की बातें सुनकर हम सभी हतप्रभ रह गये ! अचानक, एक साथ कई सवाल मेरे मन को विचलित करने लगा | बारह साल के इस बालक का अब क्या होगा ?! चंदन और उसके मम्मी-पापा के मायूस चेहरे को देखकर तरस आ रही थी ! पर, नियति को भला कौन टाल सकता है!
उसी दिन नर्सिंग होम से चंदन को छुट्टी मिल गई और उसे लेकर हमलोग वापस घर आ गये | चार दिनों बाद , आननफानन में, चंदन को लेकर उसके मम्मी-पापा इलाज़ के लिए दिल्ली विदा हो गये |
दिल्ली जाने के कुछ ही दिनों पश्चात ....उनका लिखा एक अंतर्देशीय-पत्र आया | उस समय मोबाइल और लैंडलाइन की सुविधा नहीं थी।
उसमें लिखा था---
“ सर,
नमस्ते ,
चंदन की स्थिति ठीक नहीं है | अगले सप्ताह उसका ऑपरेशन होने वाला है | ऑपरेशन के लिए अभी पुरे पैसों का इंतजाम नहीं हो पाया है | कृप्या करके दस हजार रुपया यथाशीघ्र मुझे भेज दीजिये | सदा आपका आभारी रहूँगा |
सोमेश ”
पत्र पढ़कर हम चिंता में पड़ गये ! दस हजार रुपया ! तुरंत में कहाँ से इंतजाम करें ?
आज से चौंतीस साल पहले... दस हजार रुपयों का वेल्यु बहुत अधिक होता था | इनकी नौकरी नई थी और वेतन कम था | हमलोगों के पास बैंक बेलेंस के नाम पर कुछ नहीं था | क्योंकि, जो भी वेतन इन्हें मिलता, उसमें से आधे पैसे इन्हें प्रत्येक माह घर भेजना पड़ता था |हाँ, मायके से गहने बहुत मिले थे।
वहाँ (ससुराल ) परिवार बड़ा था। लगभग दस लोग हमेशा रहते थे | गेस्ट का आनाजाना लगा रहता था। मेरे ससुर, शुरुआत में ही चार- पाँच सालों तक संस्कृत के अध्यापक रहे, बाद में नौकरी छोड़ दी। यद्यपि वे संसकृत के महाविद्वान थे | उनके पास उपजाऊ जमीन थी, उपज घर आती थी | लेकिन, इतने बड़े परिवार के भरण-पोषण के लिए वो पर्याप्त नहीं था ! उस समय मेरी तीन ननद और दो देवर स्कूल-कॉलेज में पढ़ रहे थे | ननदों की शादी और देवर के आगे की पढाई , सब बचा हुआ था | इन्हीं कारणों से आर्थिक तंगी लगी रहती थी |
घर की आर्थिक जिम्मेदारी इनके ऊपर बहुत अधिक थी | चुकी ये पदाधिकारी थे, इसलिए घरवालों की अपेक्षाएं इनसे बहुत अधिक रहती थी | अपेक्षा पर खड़े उतरना है, अपना फर्ज समझकर यह जुटे रहते थे।
पर, अभी हमारे सामने जो समस्या आ गई थी, वो अपनों से कम नहीं थी। पड़ोसी के बेटे, एक मासूम की जिंदगी का सवाल था | आखिरकार , गहने गिरवी रखकर हमनें किसी तरह से दस हजार रुपयों का इंतजाम किया और जल्दी से उन्हें भेज दिया | ताकि समय से उन्हें पैसा मिल जाय! उस समय पैसा भेजने के लिए ऑनलाइन की सुविधा नहीं थी, मनीआडर ही एक विकल्प था |
भगवान का लाख-लाख शुक्र, चंदन का ऑपरेशन सफल रहा । कुछ महीनों बाद वे लोग सभी पूर्णिया वापस आ गये | चंदन को सकुशल देखकर हमें अत्यधिक प्रसन्नता हुई | उनके घर में खुशहाली लौट आई | सभी लोग फिर से अपने पुराने दिनचर्या में नये सिरे से जुट गये |
इधर, आर्थिक तंगी रहने के बावजूद भी हमने लिहाज से कभी पैसों का तगादा उनसे नहीं किया और ना ही अपने गहने गिरवी रखकर पैसे भेजने की बात उन्हें बतायी | इसी तरह एक साल बीत गया | बात आई और गई। हमलोग भी अपने गृहस्थी में व्यस्त हो गए। पड़ोसी के साथ, आना-जाना, खाना -पीना सब कुछ पहले की तरह चलने लगा।
एक दिन सोमेश बाबू हमारे घर आये और अपने जेब से पैसे निकाल कर पति के आगे बढाते हुए बोले,
” रख लीजिए। पैसे वापस करने में बहुत विलम्ब हो गया | सच, आपका पैसा यदि मुझे समय पर नहीं मिलता तो मेरा चंदन आज.... “ कहते-कहते उनका गला भर आया ! आँसू छलक पड़े |
उनकी बातें सुनकर इनकी आँखें भी डबडबा गईं ! मैं,वहीं पास खड़ी सब देख, सुन रही थी | मुझसे रहा नहीं गया | मैं सोमेश बाबू से बोली, “ बहुत ख़ुशी की बात है कि चंदन का आपरेशन समय से हो गया । हमारा पैसा भेजना सार्थक हुआ | चंदन को हम अपने बच्चे की तरह प्यार करते हैं। बेकार में आप इतने परेशान हो रहे हैं! हम तो इस प्रकरण के मात्र निमित्त बनें , सब ईश्वर की कृपा है !"
पैसों को हाथ में थामे हुए सोमेश बाबू निःशब्द खड़े रहे, उनके आँखों से निर्मल धारा बहे जा रही थी |
उन बीते समय को यादकर मैं आज भी पुलकित हो जाती हूँ कि ईश्वर ने हमें एक सुनहरा अवसर दिया और हमने उसे शिद्दत से निभाया | कालक्रम में गहने भी गिरवी से छूट कर हमारे पास आ गए। उन गहनों को जब भी कभी देखती हूँ, चंदन का हँसता चेहरा दिख जाता है।
समय का पहिया अविरल घूमता रहा। हमदोनों परिवार अब एक शहर में नहीं रहते हैं ।पर, उनलोगों के साथ बिताये पल ,मधुर यादें बनकर आज भी मुझे सुखद अहसास दिलाती है।
मिन्नी मिश्रा / पटना
मौलिक / अप्रकाशित