Tuesday, May 7, 2019



  • आलिंगन 
अचानक से पत्तों का हिलना.. चिड़ियों का चहचहाना, सूरज का आगे बढना ... सब रूक गया।  मानो, किसी ने वक्त को थाम लिया  । वातावरण में चारों ओर से भयानक आवाज़ें और  पशुओं का क्रंदन सुनकर लोग  घर से बाहर निकलकर आ गये | स्तब्ध हो , एक दूसरे को देखने लगे । समय और अधिक विकराल होते जा रहा था ।

इन्हीं में से कुछ लोग, मंदिर की तरफ सीधे ये कहते हुए भागने लगे , "चलो..चलो,  आयाची संत के पास, वह त्रिकालदर्शी हैं , हमें जरूर बताएगें,  क्या.... सच में  इस वैज्ञानिक युग में भी प्रलय हो सकता है ?

संयोगवश उन सभी को संत का दर्शन हो गया। सभी एक साथ चिल्लाए, "बाबा बताइए ..  एकाएक ऐसा क्या हो गया...सभी पेड़ एकसाथ क्यूँ खामोश  हैं ? हवा नहीं सिसकती ... दिन , क्यूँ ठहर सा गया है ?  बचाइये  बाबा ...हमलोग बहुत घबरा रहे हैं।   हमारे बच्चे घर में विलाप कर रहे हैं।"

संत, शांत भाव से मुस्कुराकर बोले, " चिंता की बात नहीं है  | कहीं दू......र , दो अतृप्त , आत्माओं का..आज मिलन हो रहा है ।"

संत के मुँह से इतना निकलते ही गर्जन के साथ तेज़ झमाझम  बारिश होने लगी । आकाश और धरती एक  रंग में  सराबोर हो  गया |   मर्यादा की सीमाओं को लांघकर  , दोनों  एक-दुसरे को आलिंगन करने में निर्लिप्त हो गये ।  दोनों के बीच... फासला का नामो-निशान नहीं रहा । अचानक तेज हवा बहने लगी।  झूम-झूमकर डालियाँ एक-दूसरे को स्पर्श करने लगी ,दिक् दिगंत मधुमातल  हो गया । मानो वर्षों से प्यासी धरती ....  बारिश की शीतल स्पर्श से आज तृप्त हो रही हो ।
इस अद्भुत मिलन को देखकर,  सूरज भी इतना लजा गया कि, श्यामली  चादर ओढकर, घंटों निश्चिंत... दुबककर सोता रहा । वज्ञानिक युग ...बौना बन  सब देखता रहा |
                    वहां खड़े  सभी लोग एकसाथ ....इस नज़ारे को देखकर मन ही मन  प्रकृति की इबादत करने लगे  |
                                                            मिन्नी मिश्रा/पटना

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