संस्कृत शिक्षा की आवश्यकता क्यों है?
संस्कृत में सतरह सौ धातुएँ, सत्तर
प्रत्यय, अस्सी उपसर्ग हैं | इनके योग से बनने वाले शब्दों की संख्या सत्ताईस
लाख से अधिक है | यह सबसे वैज्ञानिक भाषा भी है |
आज यह आरोप लगाया जाता है कि संस्कृत जन सामान्य
की भाषा नहीं बन सकती है | लेकिन हजारों वर्ष पूर्व के पाणिनि के ‘अष्टाध्यायी’
से
ज्ञात होता है कि संस्कृत उस समय जन सामान्य और बाजार की भाषा थी | सामाजिक
आवश्यकताओं के कारण संस्कृत का मानकीकरण हुआ और यह सम्पूर्ण भारत की सूत्र भाषा
बनी | विविध संस्कृति और भाषा वाले देश को सदियों तक एक सूत्र में बांधे
रखने का श्रेय संस्कृत को है |
शिक्षा का एक उद्देश्य देश की अखंडता को बनाये रखना तथा मजबूत करना है | इस मापदंड पर संस्कृत पूरा खड़ा उतरती है | इसलिए भारत में संस्कृत शिक्षा की महती आवश्यकता है |
अंग्रेजी ने सभी भारतीय भाषाओँ को बहुत क्षति
किया है | अंग्रेजी के A से Z तक के वर्णों को किसी तार्किक आधार पर
व्यवस्थित नहीं किया गया है | इसके पीछे कोई विशेष कारण नहीं है कि F...
G से पहले
क्यों आता है या p...Q से पहले क्यों आता है?
दूसरी तरफ संस्कृत में स्वर अ, आ, इ ,ई आदि को मुख के आकार के आधार पर व्यवस्थित किया गया है | अ और आ का उच्चारण गले से, इ और ई का उच्चारण तालू से, उ और ऊ का उच्चारण ओठों से होता है | इसी तरह से व्यंजनों को भी वैज्ञानिक तरीके से जमाया गया है| क वर्ग का उच्चारण गले से, च वर्ग का उच्चारण तालू से, त वर्ग का उच्चारण दांतों से, प वर्ग का उच्चारण ओठों से होता है | संस्कृत के आलावा संसार के किसी और भाषा के वर्णों को इस तरह से तार्किक और वैज्ञानिक रूप से नहीं संरचित किया गया है |अन्य सभी भाषाओँ में त्रुटि है ...पर संस्कृत में कोई त्रुटि नहीं है |
दूसरी तरफ संस्कृत में स्वर अ, आ, इ ,ई आदि को मुख के आकार के आधार पर व्यवस्थित किया गया है | अ और आ का उच्चारण गले से, इ और ई का उच्चारण तालू से, उ और ऊ का उच्चारण ओठों से होता है | इसी तरह से व्यंजनों को भी वैज्ञानिक तरीके से जमाया गया है| क वर्ग का उच्चारण गले से, च वर्ग का उच्चारण तालू से, त वर्ग का उच्चारण दांतों से, प वर्ग का उच्चारण ओठों से होता है | संस्कृत के आलावा संसार के किसी और भाषा के वर्णों को इस तरह से तार्किक और वैज्ञानिक रूप से नहीं संरचित किया गया है |अन्य सभी भाषाओँ में त्रुटि है ...पर संस्कृत में कोई त्रुटि नहीं है |
स्वंतंत्र भारत के संविधान में जिस पंथ
निरपेक्षता का प्रमुख स्थान है, वह संस्कृत के प्रभाव को ही इंगित करता है |
यह
वैश्विक पटल पर भारत की मेधा की दुंदुभि बजा सकता है |
वैदिक काल से ही गणना और रेखागणित के गंभीर
सिद्धांतों पर चर्चा हो रही है |अंकगणित में ---भास्कर,ब्रह्मगुप्त और
महाबीर; रेखागणित में--- बौधायन और परमेश्वर; त्रिकोणमिति में---
माधव आदि उल्लेखनीय हैं | ‘ पाई’ के मूल्य के सम्बन्ध में महाबीर नामक
गणितज्ञ ने सबसे पहले नवीं सदी में गणना की थी | कणाद का परमाणु सिद्धांत
ईसा से भी पहले का है |
इसके अतिरिक्त रसायन शास्त्र, धातु
विज्ञान, शल्य चिकत्सा,आयुर्वेद अदि से सम्बंधित ग्रंथों की श्रृंखला है|
इसके
ग्रन्थ यथा चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, बागभट्ट संहिता अदि
प्राचीन भारतीय मनीषा के वैज्ञानिक अध्ययन की विस्मयकारी निधि है |
अभियांत्रिकी के क्षेत्र में-- तंजोर,मदुरई,कोणार्क,खजुराहो
आदि मेधा की पराकाष्ठा है | संस्कृत में सभी क्षेत्रों के ज्ञान विज्ञान
समाहित है | इसलिए आवश्यक है कि सभी प्रकार के लोगों की पहुँच
संस्कृत तक हो ताकि इस ज्ञान को सुरक्षित भी किया जा सके और इसका उपयोग देशहित में
किया जा सके | विदेश के कई बड़े विद्वान संस्कृत के अनुपम और
विस्तृत साहित्य को देखकर चकित हैं |
संस्कृत भाषा के विभिन्न स्वरों और व्यंजनों के
विशिष्ट उच्चारण स्थान होने के साथ प्रत्येक स्वर और व्यंजन का उच्चारण व्यक्ति के
सात ऊर्जा चक्रों में से एक या अधिक चक्रों को प्रभावित कर शरीर को ऊर्जीकृत करता
है |
प्रत्येक शब्द स्वर एवं व्यंजनों की विशिष्ट संरचना है जिसका प्रभाव व्यक्ति की चेतना पर स्पष्ट परिलक्षित होता है | इसलिए कहा गया है कि व्यक्ति को शुद्ध उच्चारण के साथ-साथ बहुत सोच समझ कर बोलना चाहिए |
प्रत्येक शब्द स्वर एवं व्यंजनों की विशिष्ट संरचना है जिसका प्रभाव व्यक्ति की चेतना पर स्पष्ट परिलक्षित होता है | इसलिए कहा गया है कि व्यक्ति को शुद्ध उच्चारण के साथ-साथ बहुत सोच समझ कर बोलना चाहिए |
संस्कृत एक स्वविकसित और संस्कारित भाषा है |
इसको
संस्कारित करने वाले महर्षि पाणिनि,महर्षि कात्यायन,महर्षि पतंजलि अदि
हैं |
भारतीय शिक्षण शैली को समाप्त करने के बाद ‘मैकाले’
( ब्रिटिश
शिक्षाविद्) द्वारा भारतीयों से भारतीयता को नष्ट करने का जो कुचक्र रचा गया,
हम उसमे
बुरी तरह फंस गए | फलस्वरूप तथाकथित आधुनिक या अंग्रेजी भाषी शिक्षा
पद्धति से शिक्षित लोग अज्ञानतावश संस्कृत को सिर्फ पूजा पंथ और कर्मकांडों की
भाषा समझ कर इसे अवैज्ञानिक और अनुपयोगी मानने लगे |
जबकि वास्तविकता यह है कि यह मात्र साहित्य,
अध्यात्म
और दर्शन तक ही सिमित नहीं है अपितु गणित, विज्ञान, औखधि, चिकित्सा,
इतिहास,
मनोविज्ञान,
भाषा
विज्ञान, अंतरिक्ष विज्ञान अदि में भी महत्वपूर्ण है |
अब तो आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस और कंप्यूटर
क्षेत्र में भी संस्कृत के उपयोग की संभावनाओं पर पश्चिमी जगत में शोध किये जा रहे
हैं | अपनी सुस्पष्ट और छंदात्मक उच्चारण प्रणाली के चलते संस्कृत को स्पीच
थेरेपी टूल के रूप में मान्यता मिल रही है | |
वर्तमान यूरोपीय भाषाएँ बोलते समय जीभ और मुँह के
कई हिस्सों का... और लिखते समय अँगुलियों की कई हलचलों का इस्तेमाल नहीं किया जाता
है |
फ़ोर्ब्स पत्रिका १९८५ के अनुसार... दुनिया में
अनुवाद के उद्देश्य के लिए उपलब्ध सबसे अच्छी भाषा संस्कृत है | नासा के
वैज्ञानिकों के अनुसार अंतरिक्ष यात्री को संवाद भेजने में वाक्य के उलट पलट हो
जाने के चलते अर्थ ही बदल जाता है| लेकिन ऐसा संवाद संस्कृत में भेजने पर अर्थ नहीं
बदलते हैं क्योंकि संस्कृत के वाक्य उलट पुलट होने पर भी अपना अर्थ नहीं बदलते हैं
|
अनेक भारतीय वैज्ञानिकों को अनुसन्धान की प्रेरणा
संस्कृत से मिली | जगदीश चंद्र बासु,चंद्र शेखर वेंकट
रमन, आचार्य प्रफुल्ला चंद्र राय, डा मेघनाद सहा जैसे विश्वविख्यात
वैज्ञानिक अपनी खोज के लिए संस्कृत को आधार मानते थे | आचार्य प्रफुल्ला
चंद्र राय विज्ञान के लिए संस्कृत शिक्षा को अनिवार्य मानते थे | जगदीश
चंद्र बसु ने अपने अनुसंधानों के स्रोत संस्कृत में खोजे थे |
वर्तमान समय में भौतिक सुख सुविधाओं के बावजूद
मनुष्य सामान्यतः अवसाद,तनाव, चिंता और विभिन्न प्रकार की बिमारियों से
ग्रस्त है |सिर्फ भौतिक उन्नति से मानव का सर्वांगीण विकास संभव नहीं है, इसके
लिए आध्यात्मिक उन्नति अत्यन्त जरुरी है | मानव स्वास्थ्य के लिए संस्कृत एकउपयोगी
भाषा है |
मिन्नी
मिश्रा / पटना
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