Saturday, August 10, 2019





समीक्षा मेरी कलम से ---
 
                          परिंदे पूछते हैं
लघुकथा के परिंदे समूह में परिंदों द्वारा अतिथि दिवस के अवसर पर डॉ. अशोक भाटिया से पूछे गये प्रश्न ही इस पुस्तक के होने का कारण बना है | इस पुस्तक का उदेश्य हर नवलेखक को संस्कारित करना है |नवलेखकों के द्वारा पूछे गये सभी प्रश्नों को जवाब और साथ में पचीस लघुकथाओं को उदाहरण देकर इन बातों को समझाया गया है |
आ. काँता रॉय जी, जो लघुकथा परिंदेकी समर्पित संचालक हैं-- के बारे में आ. डा. मालती बसंत जी का कहना है कि, कांता रॉय जैसी लेखिका सदियों में एकबार होती है वह  लघुकथाके रूप में इतनी रची-बसी है जैसे मीरा के जीवन में कृष्ण थे |

 इस पुस्तक की निम्न बातें मुझे अच्छी लगी ---
१.लघुकथाएं यदि विषय की मांग के अनुसार लम्बी हो रही है, तो उन्हें जान-बुझकर छोटा मत करें | रचना की मांग को , उसकी पूर्णता को देखें | आकार को भूल जाएं|
२.छोटे  आकार की लघुकथाओं का एक सांचा नये लेखकों के मन में बन गया है, वह बड़ा गलत है , सृजन का शत्रु है |
३. आप सोच रहे हैं कि लघुकथा रहेगी या कहानी हो जायेगी ...इस सबसे पहले रचना होना है , बाकी सब गौण है  | रचना जो सन्देश देती है , वह  पाठक की  चेतना के द्वार पर दस्तक देती है ...ये जरुरी है | कथानक (विषय वस्तु) और कथ्य (उदेश्य) पर ध्यान दें |
४. सुप्रसिद्ध साहित्यकार विष्णु प्रभाकर ने कहा, रचना कहानी पथ पर जाती है तो जाने दें, रचना बन जायेगी तो पता चल जाएगा कि वह लघुकथा है...या कहानी है | 
५. उन्हीं के अनुसार , नये लेखक पुराने लेखक को पढ़ते नहीं | पढने से पाठक ही नहीं लेखक भी समृद्ध होते हैं | वास्तव में अच्छा पढने की जरूरत है ...इसके बिना अच्छा लिख ही नहीं सकते |
६.  पंजाबी साहित्यकार,’ डॉ. जोगिन्दर सिंह निराला  के अनुसार रचना में सतही रूप से सन्देश न देकर ,परोक्ष रूप से सन्देश देना आवश्यक है |
७. पहले लेखक को अपनी मानसिकता को उदार बनाना होगा , तभी उसे कलम पकड़नी चाहिए |
८. शीर्षक की जहाँ तक बात है..यह लेखक के कौशल पर निर्भर करता है | कई बार शीर्षक पढ़कर ही पाठक रचना की और खिंचा चला आता है |
९. रचना यथासंभव बड़े से बड़े पाठक-वर्ग को ध्यान में रखकर लिखनी चाहिए |
१०. लघुकथा के लिए तंज अनिवार्य नहीं है ...हाँ लघुकथा चिंतन के लिए मजबूर कर दे, यह एक आवश्यक गुण है |
११. लिखते समय रचना को किसी वर्ग की रचना बना सकें तो उसकी ताकत और  असर बहुत बढ़ जायेंगे |

१२. जब रचना एक उदेश्य को लेकर लिखी जायेगी ,तो कालखंड दोष का कोई मतलब नहीं रह जाएगा | काल निरंतर प्रवाहमान होता है | एक क्षण की रचना कहकर हम ही लघुकथा को बौना बना रहे हैं | लघुकथा में पूरा जीवन समा सकता है...कौशल चाहिए |
१३.यदि  लघुकथा में पंचलाइन अनिवार्य हो जाए, तो सारी की सारी लघुकथा पर दबाब आ जाएगा |
१४. व्यंगात्मक शैली का यथावश्यक प्रयोग लघुकथा को नई धार , नई शक्ति प्रदान करता है |
१५. लघुकथा में क्षेत्रीय भाषा कथा को जीवंत और स्वभाविक बनाता है |
१६. बिम्ब यानि एक दृश्य के माध्यम से कहानी को प्रस्तुत करना और प्रतीक यानी संकेत --- रचना में गहरा अर्थ भरते हैं | यह कथा की ऊँचाई भरता है |

                               क्षमा सहित ----
                                       मिन्नी मिश्रा /पटना
                                         २. १० . १८


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