समीक्षा मेरी कलम से ---
“परिंदे पूछते हैं “
लघुकथा के परिंदे समूह में परिंदों द्वारा अतिथि
दिवस के अवसर पर डॉ. अशोक भाटिया से पूछे गये प्रश्न ही इस पुस्तक के होने का कारण
बना है | इस पुस्तक का उदेश्य हर नवलेखक को संस्कारित करना है |नवलेखकों
के द्वारा पूछे गये सभी प्रश्नों को जवाब और साथ में पचीस लघुकथाओं को उदाहरण देकर
इन बातों को समझाया गया है |
आ. काँता रॉय जी, जो ‘लघुकथा
परिंदे’ की समर्पित संचालक हैं-- के बारे में आ. डा. मालती बसंत जी का कहना है
कि, कांता रॉय जैसी लेखिका सदियों में एकबार होती है –वह लघुकथाके रूप में इतनी रची-बसी है जैसे –मीरा के
जीवन में कृष्ण थे |
इस
पुस्तक की निम्न बातें मुझे अच्छी लगी ---
१.लघुकथाएं यदि विषय की मांग के अनुसार लम्बी हो
रही है, तो उन्हें जान-बुझकर छोटा मत करें | रचना की मांग को ,
उसकी
पूर्णता को देखें | आकार को भूल जाएं|
२.छोटे
आकार की लघुकथाओं का एक सांचा नये लेखकों के मन में बन गया है, वह बड़ा
गलत है , सृजन का शत्रु है |
३. आप सोच रहे हैं कि लघुकथा रहेगी या कहानी हो
जायेगी ...इस सबसे पहले रचना होना है , बाकी सब गौण है | रचना जो सन्देश देती है , वह पाठक की
चेतना के द्वार पर दस्तक देती है ...ये जरुरी है | कथानक (विषय वस्तु)
और कथ्य (उदेश्य) पर ध्यान दें |
४. सुप्रसिद्ध साहित्यकार विष्णु प्रभाकर ने कहा, ‘
रचना
कहानी पथ पर जाती है तो जाने दें, रचना बन जायेगी तो पता चल जाएगा कि वह लघुकथा
है...या कहानी है |
५. उन्हीं के अनुसार , नये लेखक पुराने
लेखक को पढ़ते नहीं | पढने से पाठक ही नहीं लेखक भी समृद्ध होते हैं |
वास्तव
में अच्छा पढने की जरूरत है ...इसके बिना अच्छा लिख ही नहीं सकते |
६.
पंजाबी साहित्यकार,’ डॉ. जोगिन्दर सिंह निराला’ के अनुसार – रचना में सतही रूप
से सन्देश न देकर ,परोक्ष रूप से सन्देश देना आवश्यक है |
७. पहले लेखक को अपनी मानसिकता को उदार बनाना
होगा , तभी उसे कलम पकड़नी चाहिए |
८. शीर्षक की जहाँ तक बात है..यह लेखक के कौशल पर
निर्भर करता है | कई बार शीर्षक पढ़कर ही पाठक रचना की और खिंचा चला
आता है |
९. रचना यथासंभव बड़े से बड़े पाठक-वर्ग को ध्यान
में रखकर लिखनी चाहिए |
१०. लघुकथा के लिए तंज अनिवार्य नहीं है ...हाँ
लघुकथा चिंतन के लिए मजबूर कर दे, यह एक आवश्यक गुण है |
११. लिखते समय रचना को किसी वर्ग की रचना बना
सकें तो उसकी ताकत और असर बहुत बढ़ जायेंगे
|
१२. जब रचना एक उदेश्य को लेकर लिखी जायेगी ,तो
कालखंड दोष का कोई मतलब नहीं रह जाएगा | काल निरंतर प्रवाहमान होता है | एक क्षण
की रचना कहकर हम ही लघुकथा को बौना बना रहे हैं | लघुकथा में पूरा
जीवन समा सकता है...कौशल चाहिए |
१३.यदि
लघुकथा में पंचलाइन अनिवार्य हो जाए, तो सारी की सारी
लघुकथा पर दबाब आ जाएगा |
१४. व्यंगात्मक शैली का यथावश्यक प्रयोग लघुकथा
को नई धार , नई शक्ति प्रदान करता है |
१५. लघुकथा में क्षेत्रीय भाषा कथा को जीवंत और
स्वभाविक बनाता है |
१६. बिम्ब यानि एक दृश्य के माध्यम से कहानी को
प्रस्तुत करना और प्रतीक यानी संकेत --- रचना में गहरा अर्थ भरते हैं | यह कथा
की ऊँचाई भरता है |
क्षमा सहित ----
मिन्नी
मिश्रा /पटना
२. १०
. १८
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