Saturday, August 10, 2019


गुलाबी छाया नीले रंग ( लघुकथा संग्रह )
लेखक सह प्रकाशक –आशीष दलाल (मूल्य-१५० रुपया )
पृष्ठ संख्या –११९

समीक्षा मेरी कलम से --- सबसे पहले आ.आशीष दलाल जी को इस लघुकथा संग्रह के लिए बहुत-बहुत बधाई |
दो हाथों की मजबूत पकड़...तथा गुलाबी और नील वर्ण लिए इस पुस्तक का आवरण चित्र बहुत ही मनमोहक है | यह रंग स्त्री के कोमल भावों और पुरुष के गंभीर चिंतनशील विचारों की तरफ हमें इंगित करता है | बयासी(८२) लघुकथाओं का यह संग्रह है... जिसमें बालमन, युवामन तथा पुरुष और स्त्री के भिन्न-भिन्न मनोभावों का सजीव चित्रण किया गया है | आ.कांता रॉय जी की भूमिका ’मन के सागर की सभी लहरों में डुबकियाँ लगाती लघुकथाएँ’ से लघुकथा संग्रह की शुरुआत होती है |

*इस संग्रह की जो लघुकथाएँ मुझे बेहद अच्छी लगी वो निम्नवत है ---
‘अच्छे वाले पापा’... इस कथा में राजू ने खेल-खेल में ही अपने पापा को अच्छा सबक सिखलाया है| बहुत ही सुंदर, प्रेरक लघुकथा है |
‘रोटी’... बेहद संवेदनशील कथा है |   “साला | एक रोटी जैसी मामूली चीज के लिए चोरी की |“  बड़ी चोरी नहीं करने के कारण उस लड़के की भर्त्सना की गई , जिसने सिर्फ रोटी की चोरी की | ‘
‘दोस्त’... व्यस्क हो रहे बेटे के साथ दोस्ताना व्यवहार कर उसे सही रास्ते पर लाया जा सकता है ,इस लघुकथा में यही संदेश छुपा है |
आगे इसी क्रम में ‘सुहागरात ‘  ‘बलात्कार’ और ‘बलात्कार के बाद’... इन सभी लघुकथाओं में आपसी संवाद के द्वारा यह दर्शाया गया है कि अक्सर पत्नी अपने सुहागरात को सुखद घटना के रूप में नहीं याद करती है ...पति के जबरन वासना का शिकार होने के कारण उसके मानसिकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है |
‘तो फिर राजकुमारी नहीं आएगी’...  बेटी भ्रूणहत्या के ऊपर लिखी गई यह संवेदनशील लघुकथा है, जो माँ और बेटे के बीच संवाद के माध्यम से दर्शाया गया है |
‘एक्स्चेंज ऑफर’ इस लघुकथा का पंचलाइन बेहद खुबसूरत है |
‘प्रस्ताव और ‘जरूरतें ‘ दोनों  अच्छी लघुकथा है...इन कथाओं में सास के चरित्र को बहुत सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया है |सच में जिस लड़का या लड़की के नसीब में ऐसी सास मिलती होगी  ...उसे माँ का अभाव कभी नहीं खलता होगा | आगे इसी क्रम में ‘मर्द’, ‘फर्क’ और ‘अस्तित्व की लड़ाई’  लघुकथाएँ मुझे बहुत अच्छी लगी |
‘ब्रह्मराक्षस’... लघुकथा अच्छी है, पर इसका शीर्षक मुझे जँचा नहीं |
‘माँ कार्ड’... बेहद प्रभावशाली लघुकथा है | कथा के माध्यम से ऐसा निष्कर्ष निकलता है कि घर का पुरुष यदि ईमानदारी से निर्णय ले , तो न उसकी माँ को कोई कष्ट हो सकता है और न ही उसकी पत्नी को | आगे इसी क्रम में ‘ तीलिभर आग’,  ‘शिकार’ , ‘किरचें’ और  ‘शहर की सभ्यता’ बेहद अच्छी  लघुकथा है |
‘सौदागर’...इस कथा में एक गुनाहगार के ऊपर दो दोस्तों के बीच का संवाद,  बेहद संवेदनशील है | मेरी समझ से इसके शीर्षक पर पुनः विचार किया जा सकता है |
‘अहसास’... पत्नी के देहांत के बाद बाप-बेटी के रिश्ते को दर्शाती अत्यंत मार्मिक लघुकथा है |
‘सहजीवन’... बच्चा गोद लेने के ऊपर लिखी गई यह बेहतरीन लघुकथा है, पति-पत्नी के बीच का संवाद मेरे दिल को छू गई |
‘पिघलते जज्बात’... कथा के साथ-साथ इसका संदेश और शीर्षक भी लाजवाब है |
‘अपने लिए...’ कभी-कभी हम कामवाली से भी बहुत कुछ सीखते हैं | अच्छी सीख देती हुई यह लघुकथा है |
‘सॉरी पापा’...  बहुत ही सार्थक सृजन है, खासकर उन बच्चों को पढना चाहिए जो खाने में ना-नुकुर करते हैं  |
‘बीज’... संदेशपरक लघुकथा है | इस कथा से तात्पर्य यह निकलता है कि जिस घर की महिला समझदार होती है उस घर के पुरुष पर अधिक भार नहीं पड़ता है |
‘पिंजरे’... वृद्धाआश्रम को लेकर लिखी गई बेहद मार्मिक लघुकथा है | शीर्षक और कथा दोनों लाजवाब है | इसी क्रम में आगे ‘बेडरूम’, ’उपाय’, ’अपने लोग’ , ‘लड़की बड़ी हो गई’ और ‘बीस रूपये वाली ख़ुशी’ ... प्रभावशाली, बेहतरीन लघुकथाएँ हैं |
‘आगे वाले मोड़’... में दादा और पोते के बीच का संवाद बहुत सुंदर है | ‘हार जीत’ जातिवाद को लेकर लिखी गई बेहद संवेदनशील लघुकथा |
अंत में ---
 पुनः मैं आशीष दलाल जी को धन्यवाद  और शुभकामनाएँ देना चाहूँगी... उन्होंने इस भौतिकवादी युग में अपने लघुकथाओं के माध्यम से मानव मूल्यों को बखूबी समझाया है | सभी वर्गों के लिए यह लघुकथाएँ पठनीय है |

                 त्रुटियों के लिए क्षमा सहित----

                         मिन्नी मिश्रा / पटना
                           ८. ८. २०१९







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