Wednesday, December 1, 2021

समीक्षा मेरी कलम से

 

समीक्षा मेरी कलम से--

*मेरी बाबू *

लेखक-- निरंजन धुलेकर
पृष्ठ संख्या-160
मूल्य- 300/₹
आराध्या प्रकाशन ,मेरठ( यू. पी.)

कुछ दिनों पहले यह पुस्तक मुझे मिली | सबसे पहले आदरणीय Niranjan Dhulekar सर को सुंदर उपन्यास लिखने के लिए बहुत बहुत बधाई | पुस्तक को पढने के बाद जो कुछ मैं समझ पायी उसे सादर प्रस्तुत कर रही हूँ |

हम सभी को पता है,आदरणीय निरंजन धुलेकर सर साहित्य जगत के बहुत बड़े साहित्यकार हैं|
" मेरी बाबू " को उन्होंने बहुत ही रोचक एवं मनमोहक ढंग से रचा है । पुस्तक का आवरण पृष्ठ बेहद आकर्षक है | प्यार और विश्वास की चासनी में पगा दाम्पत्य का मधुरतम संबंध.. इस उपन्यास को पढने के साथ ही पता चल जाता है ।इसमें नायिका का नाम 'अनिता' और नायक का नाम 'नीर' है । अनिता को ही नायक ने 'बाबू' नाम से संबोधित किया है । जिसमें बच्चों जैसी मासूमियत और निश्छलता है, जिसके कारण वह नायक के दिल में समा गई।

नायक और नायिका के नाम से कथा-प्रेमी, सभी पूर्व परिचित होंगे ही | क्योंकि
आ. सर की नीर और अनीता से सम्बंधित दर्जनों रचनाएं प्रतिष्ठित साहित्यिक मंच पर हम पढ चुके हैं ।
उनके लेखन में इतनी सहजता है, जैसे लगता है हम उस पल को जी रहे हैं | हिंदी के साथ बुँदेली भाषा का प्रयोग इनके लेखन की खास विशेषता है । जिसमें माटी की सौंधी खुशबू दिखती है । यहाँ भी बुन्देली भाषा की मिठास हमें गुदगुदाती है |नीर, मेडिकल कॉलेज का स्टूडेंट है,जिसे ग्रामीण बाला 'अनीता' ... जो बारहवीं कक्षा में पढ रही है, से बेपनाह मोहब्बत हो जाता है। परिवार की आपसी रज़ामंदी से ही उन दोनों की शादी हो गई ।
पति-पत्नी के प्रेम की पराकाष्ठा और प्रगाढ़ता को उपन्यास मे बखूबी चित्रित किया गया है, जो किसी वर्ग के पाठक के दिल को झंकृत करने में निश्चित रूप से सफल होगा, ऐसा मेरा विश्वास है | उपन्यास के तीन किरदार ... ड्राईवर, केस कुमारी और गीयर.. के कारनामों ने बहुत हँसाया |

पुस्तक की कुछ पंक्तियाँ जो मुझे बेहद अच्छी लगीं ...उसे अनुक्रम, संख्या-55.. के अनुसार मैं यहाँ प्रस्तुत कर रही हूँ ---

“खेत-खलिहान” –इसमें ग्रामीण परिवेश का खुबसूरत चित्रण किया गया है | “मक्खन”- नीर को अपनी भाभी के साथ मीठे रिश्तों का इसमें वर्णन है | ‘हे गंगा मैया !जा मोड़ा को मन की लुगाई मिल जाए तो पियरी चढाऊंगी !’ “रिश्ता”—‘ तू जाने तेरा देवर जाने’—अम्मा की कही प्यारी सी पंक्ति | ”विदाई “—‘आज से तुम्हें लोग तुम्हारे नाम और काम से जानेंगे ,मेरे नाम से नहीं ...’ नायक को हॉस्टल जाते समय अपने पिता का हिदायत | “मोड़ी”— शादी से पहले नीर के अनुनय करने पर भाभी ने उसे उसकी मंगेतर अनीता से पहली बार मिलवाया.. का खूबसूरत चित्रण किया गया है | ”सेंड्रा”— ‘दूसरे दिन जब गाँव से होस्टल लौटने लगा तो पहली बार लग रहा था कि दिल पीछे छूट गया |’ (नीर का ऐसा सोचना) ”ध्रुवतारा “---उन दोनों की शादी का मनमोहक चित्रण हुआ है | “रुका हुआ चाँद”—‘ हम आपकी लुगाई हैं...बाबू बोली थी ’लुगाई’ शब्द ने तन मन को झकझोर दिया था ,लगा जैसे ....अटूट बंधन से बंध कर मेरी दुनिया ही बदल चुकी है |’ “कर्फ्यू”— ‘इस बात का भी बुरा लग रहा था कि अब जिन्दगी में पता नहीं.....पायेंगे या नहीं |” मुझे यह पंक्ति अनावश्यक लगी |”दुछत्ती”— चाँद-सितारे, लैम्प-पोस्ट, आकाशमार्ग का उम्दा चित्रण किया गया है | “हलवाई”-- ‘तुम मेरे लिए दुनिया की सबसे सुंदर औरत हो क्यूंकि तुम कोई साधारण स्त्री नहीं मेरी पत्नी हो !’ लाजवाब पंक्ति ... एक पति का अपनी पत्नी के प्रति समर्पण इससे अधिक क्या हो सकता है ! “मायका”—‘अगले जन्म में जब आप मोड़ी बन के बिदा होंगे तब पता चले ! मायका चाहे दुई कोस पर होय पर उसकी दुरी चाँद जित्ती हो जात !’ पुरुष होकर स्त्री के मन को पढना ! लेखक की कुशलता को दर्शाता है |अद्भुत् लेखन !”माधुर्य”—‘सुंदर स्त्री वही कहलाती है जिसकी सुन्दरता देख पुरुष के मन में आदर का भाव जागे उस स्त्री को पाने की इच्छा नहीं !’--- उपन्यास की यह पंक्ति मुझे सबसे अच्छी लगी | “एकरूप”—मैं मुस्कुराया ‘ मुझे क्या दोगी?’ और मेरे हृदय ने सुना ‘ मैं क्या दूँ ? मैं बची ही कहाँ?’ (‘मेरे पास कुछ बचा ही कहाँ !’--- मेरी समझ से ऐसा लिखा जाना चाहिए) ”आय लव यू “— ‘आय कुश यू ‘ काहे नाहीं बोलत? लव-कुश दुई बेटा हथी सीता मैया के ‘... गजब की कल्पना, हास्य भरपूर | “झूठी बाबू “ – बेहद मार्मिक अनुक्रम है | ‘जीवन सीमा के आगे भी आऊँगी मैं‘ और ‘इसने मुस्कुरा कर कहा कि, अच्छा लिखते हो आप ! ... मेरे मुँह से निकल गया ‘आज तेरा झूठ पकड़ा गया उपन्यास को लिखा तो तुमने ही था !’ पढ़कर भावुक हो गई | “ बाबू “—‘इस बाबू में मैंने बहुत कुछ समाया पाया! पागलपन भरे प्रेम की अंतिम मिलन और अनंत यात्रा का साथ,जीवन के उस पार भी ..!’ “ हाय दैया”— ‘आप मेरे पति हैं पर आपको देखा मैंने हमेशा कृष्ण सम सखा के रूप में | मेरे स्त्री रूप को साकार और सार्थक किया आपके इस बाबू शब्द ने |’ “डायरी”--- मैं जवाब देता, ’अरे मेरी बाबू ! कौन पढ़ेगा तेरी-मेरी बातें, गाँव की मुलाकातें ....घुंघट की बातें ,वो दुछत्ती की रातें ....?’ ‘ दुनिया में किसी के पास न थी और न कभी होगी , जैसी थी मेरी बाबू !” उपन्यास के अंतिम पृष्ठ पर चार पंक्तियों के जो दोहे लिखे हैं, वो मेरे अंतस को छू गई | नीर और अनीता के प्रगाढ़ प्रेम को दर्शाती बेहद हृदयसपर्शी लेखन के लिए हृदय से साधुवाद|

इस उपन्यास में लेखक ने गाँव से विलुप्त हो रही संस्कृति को बखूबी इंगित किया है, जो सराहनीय है।

*( टिश्यू-पेपर- मेरी समझ से यह अनुक्रम यदि नहीं भी रहता तो कोई अंतर नहीं पड़ता | वैसे इस लघुकथा को हम 'ठेकुआ' लघुकथा के रूप में पहले पढ चुके हैं ।बेहद भावपूर्ण, मर्मस्पर्शी लेखन है आपकी । सादर )

इस अनुपम कृति के लिए सर आपको पुनःबहुत बहुत बधाई और अनंत शुभकामनाएँ 🙏🙏

त्रुटियों के लिए क्षमा सहित ,
 सादर प्रणाम
मिन्नी मिश्रा / पटना
29.11.2021


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