*जिंदा मैं * (चुनिंदा लघुकथाएँ)
लेखक – अशोक जैन
अमोघ प्रकाशन ,
गुरुग्राम संस्करण—प्रथम ( अगस्त 2021) मूल्य: रु.80/-
नामचीन साहित्यकार ,परम आदरणीय अशोक जैन सर से हम सभी परिचित हैं | आ. Ashok Jain सर द्वारा प्रकाशित "जिंदा मैं" लघुकथा संग्रह पढ़ कर मैं बहुत प्रभावित हुई |लघुकथा विधा.. साहित्य की वह गंभीर विधा है, जो कम से कम शब्दों में समाज और परिवार में व्याप्त विसंगतियों को उभार कर न केवल सामने लाती है, बल्कि उनका इलाज भी करती है | संग्रह की अधिकांश लघुकथाओं में विभिन्न वर्गों के जीवन का जीवंत चित्रण प्रतीक और बिम्ब के माध्यम से ऐसा ही हुआ है | बिम्ब और प्रतीक के प्रयोग से सम्प्रेषण में चार चाँद लग जाते हैं , इस बात की पुष्टि लघुकथाओं को पढने से स्वतः प्रतीत हुई | ७१ पृष्ठों की पतली सी पुस्तक में ४१ लघुकथाओं का संकलन है | पुस्तक की जितनी भी बातें समझ में आयीं , उन्हें मैं सादर प्रस्तुत कर रही हूँ | सबसे पहले , आकर्षक आवरण पृष्ठ .. अनकहे में हमें चेता रही है , “ हे मानव !यदि अपने बहुमूल्य जीवन को सुरक्षित रखना है, तो पर्यावरण (पेड़-पौधों एवं नदियों-पहाड़ों )को बचाए रखना | वरना कोरोना जैसे अन्य संक्रामक रोग हमें निगल जाऐंगे ।” प्रायः हम सभी को पता है, पीपल और बरगद के विशाल वृक्ष से प्राणवायु बहुत अधिक उत्सर्जित होते हैं | तथा ,इन वृक्षों पर नाना प्रकार के पक्षी और कीट-पतंग का निवास स्थान भी होता है | खासकर पीपल का वृक्ष.. जो सबसे अधिक प्राणवायु देती है|’गीता’ में श्रीकृष्ण ने ऐसा कहा है... ‘ वृक्षों में मैं पीपल हूँ !’ (श्रीकृष्ण के कथन के सुंदर भाव को पुस्तक के नाम से जोड़ा जा सकता है ,यह मेरा व्यकिगत सोच है।) हालांकि, ‘जिंदा मैं’ संग्रह की एक लघुकथा का शीर्षक भी है | आगे..’समर्पण’ में लिखी यह पंक्ति,’लघुकथा के उस ‘कथ्य’ को जो अभी तक लिखा नहीं गया’ को पढ़कर मैं भावविभोर हो गई | हम लघुकथाकारों को लिखते समय इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए| ‘अंतर्मन की संवेदनाओं में ढली आमआदमी की लघुकथाएँ’—(विरेंदर ‘वीर’ मेहता) मेहता सर ने अशोक सर के साहित्यिक यात्रा के बारे में विस्तार से लिखा है | इस ज्ञानवर्धक आलेख की कुछ स्मरणीय पंक्तियाँ — ’शकुनी हार गये’ ( 1973) से इनकी लघुकथा की यात्रा प्रारम्भ हुई | इन्होंने अंग्रेजी भाषा में भी शैक्षिक पुस्तकें रचित , संवर्धित एवं संपादित की हैं | करीब 17 वर्षों तक राज्यपाल एंड संस और आर्य बुक डिपो जैसे प्रकाशकों के साथ ...प्रमुख/ सहायक सम्पादक के तौर पर कार्य करने के बाद वर्तमान में वे ‘दृष्टि’ पत्रिका का प्रकाशन कर रहे हैं | वे धीमी गति से सार्थक लेखन में विश्वास रखते हैं और लघुकथाओं को हर प्रकार से ‘समय और अनुभव की तेज आंच में पका कर ही पाठकों के सामने रखते है | (मेरी समझे से... ‘तेज आंच’ के बदले यदि ‘माध्यम आंच’ लिखा होता तो बढ़िया ,क्योंकि मध्यम आंच में पकने का कार्य सही ढंग से होता है ।)
पुस्तक की निम्न लघुकथाओं ने मुझे बहुत प्रभावित किया – पहली लघुकथा ‘डर’.. लाजवाब कथानक , कथा की अंतिम पंक्ति, “...मौत उसकी दहलीज पे डेरा डेरा डाले बैठी है, वह डरा-डरा सा रहने लगा है |” गौरतलब है | परिस्थिति बदलते ही आदमी की मानसिकता किस तरह बदल जाती है, उसीका जीवंत चित्रण है | जिस मौत को गले लगाने के लिए वह तरस रहा था, अब मरना नहीं चाहता !कारण... ‘मौत के कुएँ’ में मोटर साइकिल चलाने में अब सिद्धहस्त हो गया और इस काम के लिए उसे कई कम्पनियों से पुरस्कार भी मिला | ‘मुक्ति मार्ग’ – सुंदर कथ्य | ‘गिरगिट’ – बेहद संवेदनशील, कथा के अंत में... बेटे के पिता ने बेटी के पिता से पूछा, ”क्यूँ नहीं! कितना लगा रहे हो ?” अंदर तक झकझोरने वाली पंक्ति है | बहुत शर्मनाक बात है कि दहेज लेने की कुप्रथा अजगर की तरह आज भी जाति विशेष में जीवित है | ‘बुखार’ पारिवारिक लघुकथा , अंत से पहले की पंक्ति, “सब्जी वाले के पास जाओ ,तो कुछ लीची वगैरह ले आना|” (इस पंक्ति में स्पष्टता की कमी लगी, सही से नहीं समझने पायी ! ) ‘बँटवारा’ और ‘मजे’ .. मर्मस्पर्शी लघुकथा, सुंदर शीर्षक | ‘पोस्टर’ शुद्ध देसी घी का विज्ञापन .. बहुत मजेदार, व्यंगात्मक | ‘बूढ़ा बरगद’ खूबसूरत संवाद ,प्रतीकात्मक रूप से लिखी गई संदेशप्रद लघुकथा | ’जिंदा मैं’ धारदार एवं प्रभावशाली संवाद | ‘टूटने के बाद’ सुंदर शीर्षक , “सही तो है, जो टूटा वही फेंका गया | मूर्ति हो या मानव|” सच्चाई से रूबरू कराती ,गौरतलब पंक्ति | ‘खाली पेट‘ बेहद मार्मिक , ”चल आ ,तेरा पेट भर दूँ |” इस पंक्ति को पढ़ कर मेरी आँखें नम हो गईं | घटिया मानसिकता वाले मर्द ... लाचार, गरीब स्त्री के साथ इसी तरह बहुत बुरा बर्ताव करते हैं ! ‘निर्णय’ सही राह दिखलाती अच्छी लघुकथा | ‘पैंतरे’ शानदार शीर्षक , उम्दा प्रस्तुती |चुनाव में हो रहे तांडव को बेनकाब करती सशक्त कथा| ‘फिर भी’ एक साहित्यकार की हृदयस्पर्शी गाथा (मेरी समझ से अगर इसका शीर्षक ‘अस्तित्व की लड़ाई’ होता तो बढ़िया |) ‘जेबकतरा’ उच्च कोटि की लघुकथा , अंतिम पंक्ति-- “व्हाट..गोल्ड मेडलिस्ट ...पिक पॉकेट ..|”परिस्थितिवश, एक गोल्ड मेडलिस्ट जेबकतरा बन अपने ही शिक्षक की जेब काटता है |पढ़ कर स्तब्ध रह गई | ’दाना पानी ‘ बूढ़े पिता की दर्द भरी गाथा | लघुकथा में सकारात्मक अंत ही हो, ऐसा कहना उचित नहीं है, तथापि, कथा में बेटे ने अपने पिता को यदि नये ठिकाने पर जाने से रोक लिया होता तो बढिया लगता | ‘प्रायवेसी, बेहद हृदयस्पर्शी एवं प्रेरक ... पढ़ कर ऐसा लगा जैसे घटना को घटित होते देख रही हूँ ! ‘फैसला’ लाजवाब कथ्य| बुढापे में भी स्वाबलंबी होकर जीना चाहिए, शारदा बी का अनुकरणीय पहल | ’सुनहरी चेन वाली घड़ी’ सम्पति को लेकर भाई-भाई में लड़ाई !यथार्थ से रूबरू कराती हृदयस्पर्शी, तीक्ष्ण एवं प्रभावशाली संवाद | ‘चेतना’ उम्दा शीर्षक ,संचेतना जगाती कथा | ‘मिसाल’ हिन्दू-मुस्लिम सद्भाव का उदाहरण पेश करती, प्रेरक लघुकथा , अंत बहुत अच्छी लगी | ‘अपने-अपने दुःख’ पारिवारिक जिम्मेदारी के कारण ,चालीस पार कर चुकी कुवारी बेटी की अति संवेदनशील लघुकथा | “
अंत में यह कहना चाहूँगी कि ‘जिंदा मैं ‘की अधिकाँश लघुकथाएँ पारिवारिक जीवन के अनुभवों का जीवंत चित्रण है,जिसमें बेहतरीन शिल्प के साथ संवेदना की पराकाष्ठा है | सभी लघुकथाएँ सहज एवं प्रवाहमान शैली में लिखी गई हैं | निःसंदेह यह हर वर्ग के पाठकों के दिलोदिमाग पर गहरा प्रभाव छोड़ने में पूर्णतया सफल होंगी | हार्दिक शुभकामनाओं संग आदरणीय अशोक जैन सर को पुनः दिल से बधाई ,सादर प्रणाम । त्रुटियों के लिए क्षमा सहित 🙏
मिन्नी मिश्रा , पटना दिनांक-१२.१.२०२२
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