Tuesday, April 11, 2023

समीक्षा मेरी कलम से

 


               * बिट्टो*
     लेखक -निरंजन धुलेकर 
        पृष्ठ संख्या : 128
        मूल्य -250 /रूपए 
          आराध्या प्रकाशन 

नामचीन साहित्यकार निरंजन धुलेकर के चमत्कृत कर देने वाले साहित्य से हम सभी परिचित हैं।65 खण्डों में विभक्त यह उपन्यास निरंजन धुलेकर सर की पाँचवी कृति है ! 

इसका आकर्षक आवरण चित्र हमें बहुत कुछ सोचने पर  विवश करता है। उपन्यास का नाम "बिट्टो" बेहद प्रभावशाली लगा, ऐसा लगा जैसे पुस्तक की नायिका से प्यार हो गया। बिट्टो, एक  साधारण परिवार में जन्मी मध्यमवर्गीय लड़की की कहानी है। लड़की  के रहन- सहन, शिक्षा, संस्कार ... इन सभी मुद्दों को लेखक ‌ने बहुत बारीकी से उकेरा है,जो कि काबिलेगौर है ।बिट्टो के जन्म लेने के बाद घरवालों ने उसका दिल से स्वागत नहीं किया,बल्कि हरी इच्छा, मतलब प्रभु की इच्छा कहकर उसे स्वीकारा ।जन्म लेने के साथ ही लड़की की अवहेलना शुरू हो जाती है। उपरोक्त पंक्ति इस बात की पुष्टि  करती है। बाल्यावस्था को लांघ कर बिट्टो किशोरी से तरूणी बनती है ,इस दौरान नायिका के शरीर और मन  में हुए परिवर्तन का पुस्तक में सटीक चित्रण किया गया है। एक अहम बात... एक तरूणी के मनोभावों को लेखक ने हूबहू उतार कर रख दिया , वाकई  पढ़कर मुझे  बहुत आश्चर्य हुआ और प्रशंसनीय भी लगा ।उपन्यास को पढ़ते समय मैं लगभग तीस साल पीछे चली गई। सचमुच उस समय सब कुछ ऐसा ही होता था, जैसा लेखक ‌ने वर्णित किया है। भाई- बहन का प्यार और इला के व्यक्तित्व ने मुझे बहुत प्रभावित किया।

अंत में कहना चाहुँगी कि यह उपन्यास मध्यम वर्गीय परिवार की मानसिकता का चित्रण करता  पठनीय एवं संग्रहणीय है। ऐसा मेरा पूर्ण विश्वास है, बिट्टो की सहजता एवं सरलता सभी के हृदय में जगह बना कर ही रहेगी ।

"स्त्री को खुद का जीवन खुद सँवारना पड़ता है,घर समाज की मर्यादा की लक्ष्मण रेखा के पार सदैव उसे एक रावण खड़ा मिलेगा!"पुस्तक की यह पंक्ति मुझे सबसे अच्छी लगी।

सर, आपकी कलम निरंतर चलती रहे, अनेकानेक हार्दिक शुभकामनाओं के संग सादर प्रणाम 
 🙏🙏

मिन्नी मिश्रा, पटना 
दिनांक -10.4.2023

Thursday, January 12, 2023

समीक्षा मेरी कलम से

 समीक्षा---

*ये आप ही के किस्से हैं*

    लेखक – कुमारसम्भव जोशी 

       पृष्ठ संख्या- 172

           मूल्य-450 रुपये 

प्रकाशक -- दिशा प्रकाशन,138/16, त्रिनगर ,दिल्ली 


डॉ. कुमारसम्भव जोशी नामचीन लघुकथाकार ही नहीं, बहुत अच्छे समीक्षक भी हैं। लघुकथा विधा जगत में डॉ. कुमारसम्भव जोशी सर किसी परिचय के मुहताज नहीं हैं|सर की यह प्रथम लघुकथा संग्रह है |

'ये आप ही के किस्से हैं' ...यह पुस्तक जोशी सर ने बहुत पहले मुझे उपहार स्वरूप भेजी थी | सबसे पहले इस अनुपम कृति के लिए जोशी सर को बहुत-बहुत बधाई ।


 सुंदर आवरण पृष्ठ ,प्रिंटिंग क्वालिटी बहुत बढ़िया |पुस्तक के नाम को सार्थक करती 103 लघुकथाओं का यह अनुपम संग्रह है |सभी लघुकथाएँ एक से बढ़कर एक मोती, माणिक्य समान हैं |सभी लघुकथाएँ समाज में व्याप्त विसंगतियों, विडम्बनाओं से न सिर्फ हमें अवगत करवाती हैं ,बल्कि दिमाग को आंदोलित कर पाठक को सोचने के लिए विवश भी करती हैं।इन लघुकथाओं को पढकर सच में ऐसा लगता है कि ये तो मेरे ही क़िस्से हैं| 


'आपका ही मैं’.... में जोशी सर लिखते हैं, "सिर्फ दिल का बोझ हल्का करने के लिए नाजुक पन्नों पर बोझ डाल देना लेखन नहीं है |यह एक महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी है,जो लेखक को अपने समाज और अपनी आत्मा के प्रति पूरी वफा से निभानी होती है |” 


पुस्तक की पहली लघुकथा 'रक्षासूत्र' ...राखी की महत्ता को बताती प्यारी-सी लघुकथा है, 'सदुपयोग' -बेहद मर्मस्पर्शी लघुकथा है, जबरदस्त पंच, अंदर तक झकझोरने वाली है , पढ़कर मैं स्तब्ध रह गई | 'वाई क्रोमोसोम' बेटे से बढ़िया बहू हो सकती है,इस लघुकथा से बढ़िया इसका दूसरा उदाहरण कोई हो ही नहीं सकता है | लेकिन शीर्षक लघुकथा के साथ बहुत अधिक तालमेल नहीं बैठा रहा है,ऐसा मुझे लगा | 'अब बुद्ध मुसकुराते नहीं ' छोटी लेकिन सशक्त लघुकथा है | 'कर्मप्रारब्ध'शिव-पार्वती के सुंदर संवाद से रची गई, कन्या भ्रूणहत्या पर लिखी यह उत्कृष्ट लघुकथा है | 'दोराहे पर खड़ा आदमी' इस लघुकथा की पंचपंक्ति का भावार्थ मैं ठीक से समझ नहीं पाई | ‘11.2‘ कमाल की लघुकथा है, सहनशील पत्नी की सहनशक्ति जब समाप्त हो जाती है तो उसे चौखट लांघते  देर नहीं  लगती है| 'अवचेतन' और 'बोझ' मनोवैज्ञानिक लघुकथा है | हमारे इस पुरुष प्रधान समाज के लिए 'मर्दाना कमजोरी'  पठनीय  लघुकथा है | 'मेमसाब' कामवाली के ऊपर लिखी गई शानदार लघुकथा है | "बच्चे ठठाकर हँस पड़े तू गलत सोच रही है छुटकी | मेमसाब ऐसे थोड़े ही करती है |” यह पंक्ति स्तब्ध करने वाली है,लाजवाब सम्प्रेषण |'पिता'  उम्दा लघुकथा, इसमें विधुर पिता को अपनी दुधमुंही बच्ची पर आखिर कैसे प्यार उमड़ पड़ता है ,उसीका सजीव , मर्मस्पर्शी चित्रण हुआ है | 'बाजार'  एवं 'भेड़िया आया' शीर्षक कोपरिभाषित करती  गजब की लघुकथाएँ हैं,शानदार पंच | 'शब्द ब्रह्म'  शब्द की महत्ता को बताती यह अलभ्य लघुकथा है | इस लघुकथा में संस्कृत श्लोक का पुट... जहाँ सभी युगों को याद दिलाती है, वहीं लघुकथा विधा को उच्चता भी प्रदान करती है | 'शयनेषु रम्भा' पति-पत्नी के बीच शारीरिक सम्बन्धों को लेकर लिखी गई... रोंगटे खड़े कर देने वाली अनूठी लघुकथा है,जबरदस्त पंच | 'माँ की माँ' सरोगेट मदर के ऊपर रची गई अनोखी, सराहनीय लघुकथा है , इसमें एक माँ अपनी बेटी को माँ कहलाने के लिए यह काम करती है | 'हमारी बहुरिया'  बहुत अच्छी लघुकथा है| इसकी अंतिम पंक्ति-- "सास- ससुर ने बहूरिया को ....उसे चूम ही लेता |” मेरी समझ से अगर यह पंक्ति नहीं भी होता तो काम चल सकता था |'अंतर्द्वंद' कन्या भ्रूणहत्या पर लिखी गई शानदार लघुकथा है, लाजवाब चित्रण, हृदयस्पर्शी पंच|’हारा हुआ मैच' इस लघुकथा के अंत को मैं ठीक से समझ नहीं पायी|’सखा त्व्मेव' अच्छीलघुकथा ,पिता-पुत्री की बीच का संवाद बहुत ही तर्कसंगत,  बेहद मर्मस्पर्शी पंच | 'अछूत’, 'योगदान’, 'एक्सट्रा क्लासेज'  'गुब्बारे' ,’खाली हाथ’....बहुत ही सुंदर, भावपूर्ण, गंभीर लघुकथाएं हैं|  ‘दिल तो है दिल' गजब की प्रेम गाथा ...पढ़कर बहुत अच्छा लगा | ’पापा'  अति संवेदनशील , प्रेरक ,उत्कृष्ट लघुकथा है | जिस घर में पति पत्नी को पीटते हैं ,उनके बच्चों पर इसका कितना बुरा असर पड़ता है, उसीका मार्मिक चित्रण किया गया है। 'प्रीकॉशन'...बेहद सशक्तलघुकथा ...ऐसी उम्दा सोच के लिए लेखक को दिल से साधुवाद |’सफ़ेद' मर्म को छूती अंदर तक झकझोरने वाली लघुकथा है | 'खौफ' ,'ढाई आखर' सराहनीय लघुकथा है , 'मन्नत' ...उम्दा प्रस्तुति, जबरदस्त पंच| 'छेदवाली बनियान' सोचने को विवश करतीभावपूर्ण लघुकथा। 'कु-पिता'...अप्रतिम सृजन | कुत्ते की वफादारी और बेटे कीअहशानफरामोशी पढ़कर दिल भर आया  |  'शुभ दिन' स्त्री मन की पीड़ा को उकेरती संवेदनशील लघुकथा है |’रिश्ता'  यह लघुकथा मुझे बहुत अच्छी लगी ,सारे दृश्य चलचित्र की तरह आँखों के सामने सजीव हो उठे | ‘बेटे का बाप' ...बूढ़े पिता की दुर्दशा पढ़कर किसी का पत्थर दिल भी पिघल जाय ! उम्दा लघुकथा, हृदयविदारक पंच |

'लैदर जैकेट',  'पवित्रा'  अति संवेदनशील लघुकथाएं , शानदार शीर्षक | पुस्तक की अंतिम लघुकथा... 'इंतजार' यह बेमिशाल, अप्रतिम लघुकथा है |  विदेश में रह रहे बेटे की आस में एक पिता की किस तरह मृत्यु हो जाती है, गजब का मार्मिक चित्रण हुआ है, लेखक को इस असाधारण सृजन के लिए हृदय से साधुवाद |


अंत में कहना चहूँगी कि आ.जोशी सर ने अपनी लघुकथाओं में यथार्थ के रंग को न सिर्फ बेहतर ढंग से उकेरा है, बल्कि सुंदर शैली से उसे संवेदना के शिखर तक पहुँचाया भी है, जो रोचकता के साथ हम पाठक के दिलोदिमाग को झंकृत करने में पूर्ण रूपेण सफल है | 

मुझे पूर्ण विश्वास है कि यह लघुकथा संग्रह भविष्य में मील का पत्थर साबीत होगा। प्रथम लघुकथा संग्रह के लिए   DrKumar Sambhav Joshi सर को पुनः बहुत-बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनाएँ |

                                                  त्रुटियों के लिए क्षमा सहित 🙏💐

    मिन्नी मिश्रा ,पटना

     दिनांक--   26.12.2022

(आप सभी गुणीजन अपने को टैग ही समझिए।सादर🙏)

समीक्षा मेरी कलम से

 समीक्षा ---

               

          *सुर्ख़ लाल रंग*                                                 

       लेखक - विनय कुमार                                      

    मूल्य - 499/-(सजिल्द)

       अगोरा प्रकाशन                                     

        पृष्ठ संख्या -120


            

 सबसे पहले  पुस्तक उपहार स्वरूप भेजने के लिए आ. विनय सर का हृदय तल से आभार।🙏 

 

 ' सुर्ख लाल रंग'...अपने  नाम के अनुरूप  इसका आवरण पृष्ठ रक्ताभ लिए अनेक भावों को समेटे हुये बहुत ही आकर्षक है।यह पुस्तक चौदह कहानियों का अनुपम संग्रह है।इसकी प्रिंटिंग क्वालिटी बहुत अच्छी है। इन कहानियों की जो बात मुझे बेहद अच्छी लगी वह है- लेखक ‌ने सभी कहानियों के प्रसंगों का बड़ी सहजता से चित्रण किया है। यथार्थ को सहजता से लिख देना आसान नहीं होता है, वाकई यह लेखक की विशेषता कही जा सकती है ।


 सभी कहानियाँ ग्रामीण परिवेश से जुड़ी हुईं हैं ।इन कहानियों के कथानक तथा शीर्षक दोनों उत्कृष्ट हैं । इन कहानियों से मिट्टी की सौंधी खुशबू आती है । 'सुर्ख लाल रंग' पुस्तक की  सबसे पहली, मर्मस्पर्शी कहानी है । यह एक ऐसे गाँव की कहानी है जहाँ सांप्रदायिक भेद-भाव नहीं था, हिन्दू- मुस्लिम सगे भाई की तरह मिलकर एक साथ रहते थे, ईद, दीपावली मनाते थे।  लेकिन, किसी कारणवश सांप्रदायिक दंगे भड़क जाने से वहाँ का माहौल बिगड़ गया ,लोग गाँव से पलायन करने लगे | कहानी का अंत बेहद मार्मिक है, पड़ोसी पर विश्वास करने के कारण रज़्ज्ब दंगे का शिकार हो गया ! ’असली परिवर्तन' एक आदिवासी गाँव की कहानी है , जहाँ एक जुझारू,ईमानदार बैंक पदाधिकारी ने दिखला दिया कि मेहनत और लगन के बल पर  सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में भी विकास संभव है |  'आत्मनिर्भरता' इस कहानी को पढ़कर ऐसा लगा कि यह मेरे खुद के घर की कहानी है।क्योंकि मेरे पिताजी भी ऐसे ही स्वाभिमानी स्वभाव के व्यक्ति थे , वह सेवानिवृत्त होने के बाद भी आत्मनिर्भर रहना पसंद करते थे । 'इंतजार' एक कुरूप, हिम्मती लड़की की दिल दहलाने वाली मर्मस्पर्शी कथा है ।'उदास चाँदनी'  प्रेम की उम्दा कहानी है , कहानी पढ़ती गई.... और डूबती गई...बीच में उतार-चढ़ाव बहुत आए ,लेकिन अंत तक रोचकता बनी रही । ‘चन्नर' बेहद हृदयस्पर्शी कहानी है । इस कहानी के  बीच में लेखक ने सही लिखा है , "कमोबेश दुनिया के हर समाज में ऐसे लोग हाशिये पर ही रह रहे हैं ,जिन्हें न तो वर्तमान में जगह मिलती है और न ही भविष्य में । 'जीत का जश्न'  गाँव के चुनावी माहौल में कोरोना महामारी ने किस तरह पाँव पसारा ,जिससे बेचू के अलावे अनेक लोगों को जान गवानी पड़ी ...इसका अद्भुत,सटीक वर्णन इस कहानी में पढ़ने को मिला । 'जुनैद' कश्मीरी विद्यार्थी की संघर्ष भरी दास्तान है।  ’फिर चाँद ने निकालना छोड़ दिया ' यह मन को द्रवित करने वाली अनूठी कहानी है । 'मुर्दा परम्पराएँ ' इस कहानी को पढ़ने के बाद मृत्यू और  दाहसंस्कार के सारे दृश्य मेरे आँखों का सामने साकार हो गए !  समाज में यह  कैसी विडम्बना है कि दयनीय स्थिति होने के बावजूद परिवार वालों के चलते जोखू को सारे कर्मकांड' विधिवत करने पड़े !

‘यह बस होना था'... बहुत ही मार्मिक कहानी है । जहाँ सचिन की मौत होने से रूह काँप गए ,वहीं राजीव और वैभव की दोस्ती देखकर मुझे गर्व महसूस हुआ । 


इन सभी कहानियों को पढ़ने के बाद अंत में मैं यह कहना चाहूँगी कि इनमें लेखक के कोमल हृदय की पीड़ा और छटपटाहट को आप अच्छी तरह महसूस कर सकते हैं । सभी कहानियाँ मध्यम एवं निम्न मध्यम वर्गीय परिवार से हैं , जो लेखक की अतिसंवेदनशीलता को बखूबी दर्शाते हैं | 


इस सुंदर कृति के लिए विनय कुमार सर को बहुत-बहुत बधाई एवं उज्ज्वल भविष्य की असीम शुभकामनायें ।💐💐💐


मिन्नी मिश्रा ,पटना 

दिनांक--11.1.2023

Wednesday, January 19, 2022

समीक्षा मेरी कलम से

  *जिंदा मैं * (चुनिंदा लघुकथाएँ) 

लेखक – अशोक जैन 

 अमोघ प्रकाशन ,

गुरुग्राम संस्करण—प्रथम ( अगस्त 2021) मूल्य: रु.80/-

 नामचीन साहित्यकार ,परम आदरणीय अशोक जैन सर से हम सभी परिचित हैं | आ. Ashok Jain सर द्वारा प्रकाशित "जिंदा मैं" लघुकथा संग्रह पढ़ कर मैं बहुत प्रभावित हुई |लघुकथा विधा.. साहित्य की वह गंभीर विधा है, जो कम से कम शब्दों में समाज और परिवार में व्याप्त विसंगतियों को उभार कर न केवल सामने लाती है, बल्कि उनका इलाज भी करती है | संग्रह की अधिकांश लघुकथाओं में विभिन्न वर्गों के जीवन का जीवंत चित्रण प्रतीक और बिम्ब के माध्यम से ऐसा ही हुआ है | बिम्ब और प्रतीक के प्रयोग से सम्प्रेषण में चार चाँद लग जाते हैं , इस बात की पुष्टि लघुकथाओं को पढने से स्वतः प्रतीत हुई | ७१ पृष्ठों की पतली सी पुस्तक में ४१ लघुकथाओं का संकलन है | पुस्तक की जितनी भी बातें समझ में आयीं , उन्हें मैं सादर प्रस्तुत कर रही हूँ | सबसे पहले , आकर्षक आवरण पृष्ठ .. अनकहे में हमें चेता रही है , “ हे मानव !यदि अपने बहुमूल्य जीवन को सुरक्षित रखना है, तो पर्यावरण (पेड़-पौधों एवं नदियों-पहाड़ों )को बचाए रखना | वरना कोरोना जैसे अन्य संक्रामक रोग हमें निगल जाऐंगे ।” प्रायः हम सभी को पता है, पीपल और बरगद के विशाल वृक्ष से प्राणवायु बहुत अधिक उत्सर्जित होते हैं | तथा ,इन वृक्षों पर नाना प्रकार के पक्षी और कीट-पतंग का निवास स्थान भी होता है | खासकर पीपल का वृक्ष.. जो सबसे अधिक प्राणवायु देती है|’गीता’ में श्रीकृष्ण ने ऐसा कहा है... ‘ वृक्षों में मैं पीपल हूँ !’ (श्रीकृष्ण के कथन के सुंदर भाव को पुस्तक के नाम से जोड़ा जा सकता है ,यह मेरा व्यकिगत सोच है।) हालांकि, ‘जिंदा मैं’ संग्रह की एक लघुकथा का शीर्षक भी है | आगे..’समर्पण’ में लिखी यह पंक्ति,’लघुकथा के उस ‘कथ्य’ को जो अभी तक लिखा नहीं गया’ को पढ़कर मैं भावविभोर हो गई | हम लघुकथाकारों को लिखते समय इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए| ‘अंतर्मन की संवेदनाओं में ढली आमआदमी की लघुकथाएँ’—(विरेंदर ‘वीर’ मेहता) मेहता सर ने अशोक सर के साहित्यिक यात्रा के बारे में विस्तार से लिखा है | इस ज्ञानवर्धक आलेख की कुछ स्मरणीय पंक्तियाँ — ’शकुनी हार गये’ ( 1973) से इनकी लघुकथा की यात्रा प्रारम्भ हुई | इन्होंने अंग्रेजी भाषा में भी शैक्षिक पुस्तकें रचित , संवर्धित एवं संपादित की हैं | करीब 17 वर्षों तक राज्यपाल एंड संस और आर्य बुक डिपो जैसे प्रकाशकों के साथ ...प्रमुख/ सहायक सम्पादक के तौर पर कार्य करने के बाद वर्तमान में वे ‘दृष्टि’ पत्रिका का प्रकाशन कर रहे हैं | वे धीमी गति से सार्थक लेखन में विश्वास रखते हैं और लघुकथाओं को हर प्रकार से ‘समय और अनुभव की तेज आंच में पका कर ही पाठकों के सामने रखते है | (मेरी समझे से... ‘तेज आंच’ के बदले यदि ‘माध्यम आंच’ लिखा होता तो बढ़िया ,क्योंकि मध्यम आंच में पकने का कार्य सही ढंग से होता है ।)

 पुस्तक की निम्न लघुकथाओं ने मुझे बहुत प्रभावित किया – पहली लघुकथा ‘डर’.. लाजवाब कथानक , कथा की अंतिम पंक्ति, “...मौत उसकी दहलीज पे डेरा डेरा डाले बैठी है, वह डरा-डरा सा रहने लगा है |” गौरतलब है | परिस्थिति बदलते ही आदमी की मानसिकता किस तरह बदल जाती है, उसीका जीवंत चित्रण है | जिस मौत को गले लगाने के लिए वह तरस रहा था, अब मरना नहीं चाहता !कारण... ‘मौत के कुएँ’ में मोटर साइकिल चलाने में अब सिद्धहस्त हो गया और इस काम के लिए उसे कई कम्पनियों से पुरस्कार भी मिला | ‘मुक्ति मार्ग’ – सुंदर कथ्य | ‘गिरगिट’ – बेहद संवेदनशील, कथा के अंत में... बेटे के पिता ने बेटी के पिता से पूछा, ”क्यूँ नहीं! कितना लगा रहे हो ?” अंदर तक झकझोरने वाली पंक्ति है | बहुत शर्मनाक बात है कि दहेज लेने की कुप्रथा अजगर की तरह आज भी जाति विशेष में जीवित है | ‘बुखार’ पारिवारिक लघुकथा , अंत से पहले की पंक्ति, “सब्जी वाले के पास जाओ ,तो कुछ लीची वगैरह ले आना|” (इस पंक्ति में स्पष्टता की कमी लगी, सही से नहीं समझने पायी ! ) ‘बँटवारा’ और ‘मजे’ .. मर्मस्पर्शी लघुकथा, सुंदर शीर्षक | ‘पोस्टर’ शुद्ध देसी घी का विज्ञापन .. बहुत मजेदार, व्यंगात्मक | ‘बूढ़ा बरगद’ खूबसूरत संवाद ,प्रतीकात्मक रूप से लिखी गई संदेशप्रद लघुकथा | ’जिंदा मैं’ धारदार एवं प्रभावशाली संवाद | ‘टूटने के बाद’ सुंदर शीर्षक , “सही तो है, जो टूटा वही फेंका गया | मूर्ति हो या मानव|” सच्चाई से रूबरू कराती ,गौरतलब पंक्ति | ‘खाली पेट‘ बेहद मार्मिक , ”चल आ ,तेरा पेट भर दूँ |” इस पंक्ति को पढ़ कर मेरी आँखें नम हो गईं | घटिया मानसिकता वाले मर्द ... लाचार, गरीब स्त्री के साथ इसी तरह बहुत बुरा बर्ताव करते हैं ! ‘निर्णय’ सही राह दिखलाती अच्छी लघुकथा | ‘पैंतरे’ शानदार शीर्षक , उम्दा प्रस्तुती |चुनाव में हो रहे तांडव को बेनकाब करती सशक्त कथा| ‘फिर भी’ एक साहित्यकार की हृदयस्पर्शी गाथा (मेरी समझ से अगर इसका शीर्षक ‘अस्तित्व की लड़ाई’ होता तो बढ़िया |) ‘जेबकतरा’ उच्च कोटि की लघुकथा , अंतिम पंक्ति-- “व्हाट..गोल्ड मेडलिस्ट ...पिक पॉकेट ..|”परिस्थितिवश, एक गोल्ड मेडलिस्ट जेबकतरा बन अपने ही शिक्षक की जेब काटता है |पढ़ कर स्तब्ध रह गई | ’दाना पानी ‘ बूढ़े पिता की दर्द भरी गाथा | लघुकथा में सकारात्मक अंत ही हो, ऐसा कहना उचित नहीं है, तथापि, कथा में बेटे ने अपने पिता को यदि नये ठिकाने पर जाने से रोक लिया होता तो बढिया लगता | ‘प्रायवेसी, बेहद हृदयस्पर्शी एवं प्रेरक ... पढ़ कर ऐसा लगा जैसे घटना को घटित होते देख रही हूँ ! ‘फैसला’ लाजवाब कथ्य| बुढापे में भी स्वाबलंबी होकर जीना चाहिए, शारदा बी का अनुकरणीय पहल | ’सुनहरी चेन वाली घड़ी’ सम्पति को लेकर भाई-भाई में लड़ाई !यथार्थ से रूबरू कराती हृदयस्पर्शी, तीक्ष्ण एवं प्रभावशाली संवाद | ‘चेतना’ उम्दा शीर्षक ,संचेतना जगाती कथा | ‘मिसाल’ हिन्दू-मुस्लिम सद्भाव का उदाहरण पेश करती, प्रेरक लघुकथा , अंत बहुत अच्छी लगी | ‘अपने-अपने दुःख’ पारिवारिक जिम्मेदारी के कारण ,चालीस पार कर चुकी कुवारी बेटी की अति संवेदनशील लघुकथा | “ 

अंत में यह कहना चाहूँगी कि ‘जिंदा मैं ‘की अधिकाँश लघुकथाएँ पारिवारिक जीवन के अनुभवों का जीवंत चित्रण है,जिसमें बेहतरीन शिल्प के साथ संवेदना की पराकाष्ठा है | सभी लघुकथाएँ सहज एवं प्रवाहमान शैली में लिखी गई हैं | निःसंदेह यह हर वर्ग के पाठकों के दिलोदिमाग पर गहरा प्रभाव छोड़ने में पूर्णतया सफल होंगी | हार्दिक शुभकामनाओं संग आदरणीय अशोक जैन सर को पुनः दिल से बधाई ,सादर प्रणाम । त्रुटियों के लिए क्षमा सहित 🙏

 मिन्नी मिश्रा , पटना दिनांक-१२.१.२०२२

Wednesday, December 1, 2021

समीक्षा मेरी कलम से

 

समीक्षा मेरी कलम से--

*मेरी बाबू *

लेखक-- निरंजन धुलेकर
पृष्ठ संख्या-160
मूल्य- 300/₹
आराध्या प्रकाशन ,मेरठ( यू. पी.)

कुछ दिनों पहले यह पुस्तक मुझे मिली | सबसे पहले आदरणीय Niranjan Dhulekar सर को सुंदर उपन्यास लिखने के लिए बहुत बहुत बधाई | पुस्तक को पढने के बाद जो कुछ मैं समझ पायी उसे सादर प्रस्तुत कर रही हूँ |

हम सभी को पता है,आदरणीय निरंजन धुलेकर सर साहित्य जगत के बहुत बड़े साहित्यकार हैं|
" मेरी बाबू " को उन्होंने बहुत ही रोचक एवं मनमोहक ढंग से रचा है । पुस्तक का आवरण पृष्ठ बेहद आकर्षक है | प्यार और विश्वास की चासनी में पगा दाम्पत्य का मधुरतम संबंध.. इस उपन्यास को पढने के साथ ही पता चल जाता है ।इसमें नायिका का नाम 'अनिता' और नायक का नाम 'नीर' है । अनिता को ही नायक ने 'बाबू' नाम से संबोधित किया है । जिसमें बच्चों जैसी मासूमियत और निश्छलता है, जिसके कारण वह नायक के दिल में समा गई।

नायक और नायिका के नाम से कथा-प्रेमी, सभी पूर्व परिचित होंगे ही | क्योंकि
आ. सर की नीर और अनीता से सम्बंधित दर्जनों रचनाएं प्रतिष्ठित साहित्यिक मंच पर हम पढ चुके हैं ।
उनके लेखन में इतनी सहजता है, जैसे लगता है हम उस पल को जी रहे हैं | हिंदी के साथ बुँदेली भाषा का प्रयोग इनके लेखन की खास विशेषता है । जिसमें माटी की सौंधी खुशबू दिखती है । यहाँ भी बुन्देली भाषा की मिठास हमें गुदगुदाती है |नीर, मेडिकल कॉलेज का स्टूडेंट है,जिसे ग्रामीण बाला 'अनीता' ... जो बारहवीं कक्षा में पढ रही है, से बेपनाह मोहब्बत हो जाता है। परिवार की आपसी रज़ामंदी से ही उन दोनों की शादी हो गई ।
पति-पत्नी के प्रेम की पराकाष्ठा और प्रगाढ़ता को उपन्यास मे बखूबी चित्रित किया गया है, जो किसी वर्ग के पाठक के दिल को झंकृत करने में निश्चित रूप से सफल होगा, ऐसा मेरा विश्वास है | उपन्यास के तीन किरदार ... ड्राईवर, केस कुमारी और गीयर.. के कारनामों ने बहुत हँसाया |

पुस्तक की कुछ पंक्तियाँ जो मुझे बेहद अच्छी लगीं ...उसे अनुक्रम, संख्या-55.. के अनुसार मैं यहाँ प्रस्तुत कर रही हूँ ---

“खेत-खलिहान” –इसमें ग्रामीण परिवेश का खुबसूरत चित्रण किया गया है | “मक्खन”- नीर को अपनी भाभी के साथ मीठे रिश्तों का इसमें वर्णन है | ‘हे गंगा मैया !जा मोड़ा को मन की लुगाई मिल जाए तो पियरी चढाऊंगी !’ “रिश्ता”—‘ तू जाने तेरा देवर जाने’—अम्मा की कही प्यारी सी पंक्ति | ”विदाई “—‘आज से तुम्हें लोग तुम्हारे नाम और काम से जानेंगे ,मेरे नाम से नहीं ...’ नायक को हॉस्टल जाते समय अपने पिता का हिदायत | “मोड़ी”— शादी से पहले नीर के अनुनय करने पर भाभी ने उसे उसकी मंगेतर अनीता से पहली बार मिलवाया.. का खूबसूरत चित्रण किया गया है | ”सेंड्रा”— ‘दूसरे दिन जब गाँव से होस्टल लौटने लगा तो पहली बार लग रहा था कि दिल पीछे छूट गया |’ (नीर का ऐसा सोचना) ”ध्रुवतारा “---उन दोनों की शादी का मनमोहक चित्रण हुआ है | “रुका हुआ चाँद”—‘ हम आपकी लुगाई हैं...बाबू बोली थी ’लुगाई’ शब्द ने तन मन को झकझोर दिया था ,लगा जैसे ....अटूट बंधन से बंध कर मेरी दुनिया ही बदल चुकी है |’ “कर्फ्यू”— ‘इस बात का भी बुरा लग रहा था कि अब जिन्दगी में पता नहीं.....पायेंगे या नहीं |” मुझे यह पंक्ति अनावश्यक लगी |”दुछत्ती”— चाँद-सितारे, लैम्प-पोस्ट, आकाशमार्ग का उम्दा चित्रण किया गया है | “हलवाई”-- ‘तुम मेरे लिए दुनिया की सबसे सुंदर औरत हो क्यूंकि तुम कोई साधारण स्त्री नहीं मेरी पत्नी हो !’ लाजवाब पंक्ति ... एक पति का अपनी पत्नी के प्रति समर्पण इससे अधिक क्या हो सकता है ! “मायका”—‘अगले जन्म में जब आप मोड़ी बन के बिदा होंगे तब पता चले ! मायका चाहे दुई कोस पर होय पर उसकी दुरी चाँद जित्ती हो जात !’ पुरुष होकर स्त्री के मन को पढना ! लेखक की कुशलता को दर्शाता है |अद्भुत् लेखन !”माधुर्य”—‘सुंदर स्त्री वही कहलाती है जिसकी सुन्दरता देख पुरुष के मन में आदर का भाव जागे उस स्त्री को पाने की इच्छा नहीं !’--- उपन्यास की यह पंक्ति मुझे सबसे अच्छी लगी | “एकरूप”—मैं मुस्कुराया ‘ मुझे क्या दोगी?’ और मेरे हृदय ने सुना ‘ मैं क्या दूँ ? मैं बची ही कहाँ?’ (‘मेरे पास कुछ बचा ही कहाँ !’--- मेरी समझ से ऐसा लिखा जाना चाहिए) ”आय लव यू “— ‘आय कुश यू ‘ काहे नाहीं बोलत? लव-कुश दुई बेटा हथी सीता मैया के ‘... गजब की कल्पना, हास्य भरपूर | “झूठी बाबू “ – बेहद मार्मिक अनुक्रम है | ‘जीवन सीमा के आगे भी आऊँगी मैं‘ और ‘इसने मुस्कुरा कर कहा कि, अच्छा लिखते हो आप ! ... मेरे मुँह से निकल गया ‘आज तेरा झूठ पकड़ा गया उपन्यास को लिखा तो तुमने ही था !’ पढ़कर भावुक हो गई | “ बाबू “—‘इस बाबू में मैंने बहुत कुछ समाया पाया! पागलपन भरे प्रेम की अंतिम मिलन और अनंत यात्रा का साथ,जीवन के उस पार भी ..!’ “ हाय दैया”— ‘आप मेरे पति हैं पर आपको देखा मैंने हमेशा कृष्ण सम सखा के रूप में | मेरे स्त्री रूप को साकार और सार्थक किया आपके इस बाबू शब्द ने |’ “डायरी”--- मैं जवाब देता, ’अरे मेरी बाबू ! कौन पढ़ेगा तेरी-मेरी बातें, गाँव की मुलाकातें ....घुंघट की बातें ,वो दुछत्ती की रातें ....?’ ‘ दुनिया में किसी के पास न थी और न कभी होगी , जैसी थी मेरी बाबू !” उपन्यास के अंतिम पृष्ठ पर चार पंक्तियों के जो दोहे लिखे हैं, वो मेरे अंतस को छू गई | नीर और अनीता के प्रगाढ़ प्रेम को दर्शाती बेहद हृदयसपर्शी लेखन के लिए हृदय से साधुवाद|

इस उपन्यास में लेखक ने गाँव से विलुप्त हो रही संस्कृति को बखूबी इंगित किया है, जो सराहनीय है।

*( टिश्यू-पेपर- मेरी समझ से यह अनुक्रम यदि नहीं भी रहता तो कोई अंतर नहीं पड़ता | वैसे इस लघुकथा को हम 'ठेकुआ' लघुकथा के रूप में पहले पढ चुके हैं ।बेहद भावपूर्ण, मर्मस्पर्शी लेखन है आपकी । सादर )

इस अनुपम कृति के लिए सर आपको पुनःबहुत बहुत बधाई और अनंत शुभकामनाएँ 🙏🙏

त्रुटियों के लिए क्षमा सहित ,
 सादर प्रणाम
मिन्नी मिश्रा / पटना
29.11.2021


समीक्षा मेरी कलम से

 समीक्षा मेरी कलम से--

*शेड्स *

नामचीन लेखिका आदरणीया संध्या तिवारी जी की पुस्तक ‘शेड्स ‘..कुछ दिनों पहले मुझे उपहार स्वरूप मिली | सबसे पहले आपका तहे दिल से शुक्रिया ,सादर आभार | 

मैं साधारण सी लेखिका!सच कहूँ तो इस पुस्तक को पढ़ कर मेरे अंदर का लेखक तृप्त हो गया!अपनी आपबीती और दिल में उमड़ती भावनाओं को आपने बिना लाग लपेट के जितनी सच्चाई और संवेदना से पेश किया है, वो काबिलेतारीफ है ।शैली और कलात्मक लेखन ... इन दोनों दृष्टिकोण से यह पुस्तक मेरे दिल में घर कर गई | इसे पढने के बाद जो अनुभूति हुई उसे शब्दों में बयाँ करने का मैंने भरसक प्रयत्न किया है | पता नहीं, मैं आपकी भावनाओं को कितना समझ पायी ! 


पुस्तक का आवरण पृष्ठ .... दो हाथ एक दूसरे से दूरी बनाये हुए , अनकहे में बहुत कुछ कह रही है | 96 पृष्ठ और 22 अनुक्रम की यह पुस्तक .. जीवन के विविध रंगों एवं अनुभवों को समेटे अपनाप में विशिष्ट है | आपकी तार्किक क्षमता और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण प्रशंसनीय है | बीच-बीच में उद्धरित संस्कृत के श्लोक न केवल पुस्तक की गरिमा को चार चाँद लगा रहा है , अपितु आपकी विद्वत्ता को भी भरपूर रेखांकित कर रहा है | 

अब पुस्तक के अनुक्रम की ओर बढती हूँ | जो पंक्तियाँ मुझे बहुत प्रभावित किया ,वो निम्नलिखित हैं----

*कुमुदनी बनाम बेहाया – लेखिका अपने बारे में लिखती हैं ---“यों तो मैं मध्यमवर्गीय परिवार से हूँ ...जहाँ स्वेच्छाचारिता के लिए कोई स्थान नहीं है | बिना किसी फसाने के किशोरवय बीती ,उसके बाद घर वालों की इच्छा के अनुरूप यौवन की शैशवावस्था में ही व्याह दी गई | मैं उनके लिए सास-ससुर की सुलक्षणा बहू , बहनों के लिए माँ सामान भाभी और उनके लिए पतिव्रता स्त्री थी जो कहीं पुरानों में पायी जाती रही होगी | इससे इतर शायद उनकी कोई कल्पना ही न थी ,और मैं उनकी कल्पना के ठीक उलट प्रेमिका की कल्पना में जी रही थी |”

इसी क्रम में आगे ... एक जगह स्माल गेज ट्रेन का हु ब हू चित्रण किया गया है | पति के साथ वो ट्रेन से मायेके जा रहीं हैं | ट्रेन आउटर सिग्नल के पास काफी देर से रुकी है | उसे खिड़की के सामने एक डबरा दिखा....उसमें कुमुदनी का फूल | उसने पति से हठ किया ,“ सुनो न मुझे कुमोदनी ला दो , प्लीज |” ..... उन्होंने मुझे धकियाते हुए खिड़की से झांककर देखा फिर बोले, क्या करोगी फूल का और गाड़ी चल दी तो ?” --- यहाँ लेखिका ने पति के रुखड़े स्वभाव को बखूबी इंगित किया है | जिसका हृदय कल्पना की उड़न भरना नहीं जानता ! 

*एक पत्र उम्र के सोलहवें बसंत के नाम ---- “.......जब मेरे सोलहवें बसंत की चुगली रजनीगंधा हवा से करती ..और हवा सबके कान में मंतर सा फूंक आती थी ..तब शिकंजे कस दिए जाते थे आसपास और सघन हो जाती थी घरेलू और सामाजिक पहरेदारियाँ |” कितना अच्छा लिखा है , सोलहवें बसंत की चुगली ...वाह ! 

* दुर्घटना के बाद --- 22 मई को हुए पति के एक्सीडेंट के उनके जन्मदिन पर लेखिका ने हृदय के उद्गार व्यक्त किये ---“ आप हमारे जीवन का सुनहरा रंग हैं | ये बात दुःख की घड़ी में मालुम पड़ी | आप हैं तो अस्तित्व है | दुःख जीवन में केवल मौन नहीं भरता , सिख भी देता है | हम सब जल्दी-जल्दी एक जीवन में कई जीवन जिए जाने की जिद्द में लगे रहते हैं लेकिन....एक ही मुकम्मल जिन्दगी जी ले वही काफी है |” बहुत सही लिखा है संध्या जी ने | 

*वह एक दिन — इसमें अत्यंत कारुणिक और अध्यात्मिक भाव से लेखिका ने दक्षिणेश्वर काली को स्मरण किया है | जिसे समझना आसन नहीं था | मुझे दो-तीन बार पढना पड़ा | आरम्भ श्रीमद्भागवतगीता के चतुर्थ अध्याय के पांचवें श्लोक से है | संस्कृत से लेखिका को कितनी रूचि है और ज्ञान भी ...यह इस बात का प्रतीक है |

* उच्छ्वास – सच में कोरोना काल मानव के लिए अभिशाप बनकर आया वहीं प्रकृति के लिए वरदान | बहुत ही सशक्त एवं मार्मिक चित्रण किया गया है |“लॉकडाउन के रीते दिनों और खुद्दुरी रातों की अलसाई सुबहें अक्सर बच्चों की पिटाई और उसके बाद बच्चों की पंचम स्वर में किकिआते हुए रोने की आवाज से होती हुई शामें ....” 

मेरी समझ से इस पंक्ति में ‘पंचम स्वर’ के बदले ‘करुण स्वर’ लिखा होना चाहिए था ..क्यूंकि ‘पंचम स्वर’ शब्द का प्रयोग हमेशा सकारत्मक के लिए ही होता है| 

*श्मश्रु – मतलब (दाढ़ी –मूँछ) ,यह शब्द मेरे लिए नया था | मैंने शब्दकोश का सहारा लिया | लेखिका ने अपने मिलिटरी मामा के मूँछों के बारे में मजेदार लिखा है –“ऐसा लगता था जैसे आवाज और मूंछों को हमेशा पेट्रोलियम जैली या कड़क कलफ में डूबोकर ....सुखाकर अभी-अभी अलगनी से उतारकर लाये हो |” 

* नौकरेष्णा --- “अपनी शैक्षणिक योग्यता का उपयोग और उपभोग कैसे हो,दिन-रात इच्छा सर्पिनी अपनी लपलपाती दोमुंही जिह्वा से कहीं किसी अवसर रूपी शिकार की टोह में रहने लगी थी |” लेखिका ने बिलकुल सही लिखा है , आज से लगभग पचीस -तीस साल पहले मिडिल क्लास फेमिली में पढ़ी-लिखी बहू की यही मनोदशा रहती थी | नौकरी करने के लिए उसे बहुत जद्दोजहद करना पड़ता था | लेकिन संध्या जी ने बहुत संघर्ष किया ,अपनी महत्वाकांक्षाओं को कभी मरने नहीं दिया | पढ़कर मुझे बहुत प्रेरणा मिली लेकिन संघर्षों की कथा पढ़ कर कलेजा धक् से रह गया , औरत की अग्नि परीक्षा हर युग में होती है !

* अरे, लोगों तुम्हारा क्या..मैं जानूँ मेरा खुदा जाने –-- नीम के पेड़ से दोस्त की तरह बातें करना और उसके बारे में लेखिका की भावना को  पढ़कर रोम-रोम पुलकित हो उठा | “वह निर्विकार है |अपराजय भी , क्यूंकि मैंने नीम के फूल कभी मुरझाते नहीं देखे | वह सदा मुस्कुराते हैं, चाहे शाखों पर हों या जमीन पर |” 

* हम भी उठेंगे अपनी राख से किसी रोज –-- एक बार संध्या जी को अभिनय करने का ऑफर आया ---  “अनुराग कश्यप की एक फिल्म ‘मुक्केबाज ‘ में ..... “मेहमान कलाकार“ के अभिनय के लिए... एक परिचित ने मुझे फोन किया, “उसके लिए कुछेक कलाकार स्थानीय चाहिए , आप करेंगी ..?”.....मैं कुछ हकला गई लेकिन प्रति उत्पन्न मति ने मुझे तुरंत संभाल लिया |“ आगे वो लिखती हैं ,”........लेकिन अब घर में क्या बहाना बना कर बरेली जाऊँगी? यह विचार मन को इस तरह मथे जा रहा था कि....उमस वाली आषाढ़ी गर्मी में किसी ने अनजाने ही ....बिन खिड़की वाली कोठरी का बाहर से दरवाजा बन्द कर दिया है “| आगे वो लिखती हैं--“चीजों को अपनी परिधि में जबरदस्ती लाने वह आपकी नहीं हो जाती | मैं जीवन से शायद कुछ ज्यादा ही माँग लेती हूँ |” यह पंक्ति बहुत ही विचारणीय और सच्ची लगी | 

*सब ठाठ पड़ा रह जाएगा – इसमें भी कोरोना काल का हृदयविदारक चित्रण किया गया है | यहाँ मैं कहना चाहूँगी कि यदि इसे ‘उच्छ्वास’ अनुक्रम  के साथ या उसके तुरंत बाद लिखा जाता तो अच्छा तारतम्य बैठता| क्यूंकि दोनों में कोरोना काल का ही मर्मस्पशी चित्रण है |

*ऐ..स ..क्रे..म --- बहुत मजेदार संस्मरण | गली-मुहल्ले में घूम-घूम कर सामन बेचने वाला जिस तरह से आवाज लगाता है, यदि हम झांक कर नहीं देखें तो क्या बेचता है, वो सही से पता नहीं चलता | ऐसा ही हुआ, गली में आवाज देकर कोई मैक्सी बेच रहा था..और लेखिका को सुनाई पड़ा जैसे वो आइसक्रीम बेच रहा है |

*वह जो साकार प्रेम है --- प्रेम को अलंकृत रूप से इस तरह परिभाषित करना, वाह! --“तभी तो प्रेम के फूल किसी एक मुकद्दस महीने नहीं पुरे वर्ष भर खिलते रहते हैं | जब जीवन दुखों की घाम से चटख रहा हो तब भी ये कृष्णचूड़ा या कर्णिकार से लहलहा उठते हैं | शरद ऋतू में पारिजात से लकदक कर देते हैं |”

*उड़ जाएगा हंस अकेला – अपने दिवंगत पिता को याद करती लेखिका |

* वैधव्य---पिता की मृत्यु के बाद विधवा हुई माँ की दर्द भरी गाथा ---“आज जब पति दुनिया के आंगन से विदा हुआ तो लोगों ने उसकी साँसें छोड़ सब छीन लिया |” आगे .....“पशु समाज मुझे ज्यादा रुचता है | .....जब तक भूख न हो कोई किसी को अपने अहम की , या रीती-नीति की बेदी पर बलि नहीं चढ़ाता । हे! समाज , स्त्री को वस्तु में तब्दील करना तुमसे अच्छा कौन जानता है... !”

*अंतिम विदा वेला के क्षणों में--- इस अनुक्रम को पाँच भागों में विभक्त किया गया है | सभी एक से बढ़कर एक बेहद संवेदनशील है | घर में कामवाली बूढी नौकरानी, जिसे मौसी के नाम से लेखिका ने संबोधित किया है | मौसी का आदतन हमेशा कुछ पैसे माँगना | उस दिन भी ऐसा ही हुआ ,मौसी ने कहा, “तनिक दै देओ|” आगे लेखिका लिखती हैं--- “मैंने यह बात उस समय महसूस की थी ....लेकिन कभी-कभी इंसान इतना संसारी हो जाता है कि वह अपने जमीर की आवाज पर भी ध्यान नहीं देता | उस दिन मेरा भी कुछ ऐसा ही हाल हुआ | दो दिन बाद उसके शराबी बेटे ने आकर मुझसे कहा, “ वह अब इस दुनिया में नहीं रही |” उसके बेटे के हाथ पर पैसा देते हुए लेखिक का मन ग्लानि से भर गया... “ काश! ये रूपये मैंने उसे दो दिन पहले दिए होते तो शायद वो जिन्दा होती |” आगे....“गंदले पायजामें का चिकट नारा कुर्ते से बाहर ऐसे झाँक रहा था , जैसे साबुन की सफेद झाग के बीच रपकती मेल पानी की धार |” 

वाह ! कमाल की लेखनी !

पढ़कर मुझे यह एहसास हुआ कि  यदि इस पुस्तक का नाम हिंदी या संस्कृत में रहता तो अधिक श्रेयस्कर होता | 

इस अनुपम कृति के लिए आदरणीया Dr.sandhya tiwari जी को हृदय से साधुवाद | मुझे पूर्ण विश्वास है, सभी पाठकों को यह पुस्तक बहुत रुचिकर लगेगी | 

संध्या जी, आपसे एक विनम्र निवेदन , इसे उपन्यास के रूप में लिखने का जरूर प्रयत्न करें |

उज्ज्वल भविष्य की असीम शुभकामनाएँ | सादर 🙏


त्रुटियों के लिए क्षमा सहित,

मिन्नी मिश्रा, पटना 

24.10.21

Friday, October 16, 2020

कोविड --19 का संदेश

  *कोविड -19 का संदेश* 

 सम्पूर्ण विश्व आज कोरोना संक्रमण से त्रस्त है | चारों ओर त्राहिमाम का शोर सुनाई पड़ रहा है | वायरस के संक्रमण से असंख्य लोगों की मृत्यु हो चुकी है , संक्रमण रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है | दुखद बात यह है कि इसका पूर्ण रूप से स्थायी इलाज अभी संभव नहीं हो पाया है ! कोरोना के कारण विश्व की अर्थव्यवस्था चौपट हो गई है जो सचमुच बेहद चिंताजनक है | 


लेकिन एक बात गौरतलब है, भारत में कोरोना की महामारी अमेरिका, ब्राजील, जापान, फ़्रांस, इटली, ब्रिटेन जैसे विकसित देशों की तुलना में अपेक्षाकृत बहुत कम है | जबकि विकसित देशों में स्वास्थ्य व्यवस्था भारत से कई गुना बेहतर है | जिससे यह कयास लगाया जा सकता है कि भारत के लोगों में रोग प्रतिरोधक क्षमता अपेक्षाकृत बेहतर है | संभवतः इसी वजह से कोरोना का कुप्रभाव यहाँ कम दिख रहा है | 

 कोरोना संक्रमण की रोकथाम में हमारे प्रधानमंत्री ‘मोदी जी’ की सतर्कता का श्रेय जाता है | कोविड-19 एक बहुत बड़ा गेम-चेंजेर साबित हुआ है | वैश्विक स्तर पर कोरोना वायरस ने जो युगांतकारी परिवर्तन लाया है, उसका अद्भुत् प्रभाव अब दिखने लगा है | 

 भारत में गरीबी,कुपोषण,कमजोर स्वास्थ्य व्यवस्था होने के बावजूद यहाँ के लोगों की इम्युनिटी अन्य विकसित देशों के लोगों से बेहतर है | इस विभीषिका के माध्यंम से प्रकृति ने हमें सुंदर संदेश दिया है ,जो चौकाने वाली है |क्योंकि,हमारी सांस्कृतिक परम्परा, जैसे—--- कीर्तन-भजन, पूजा-पाठ , परिवार को साथ लेकर चलना आदि, अच्छे संस्कारी विचारों का साइको-सोमेटिक प्रभाव स्वास्थ्य पर बहुत अच्छा होता है | अतः इस आधार पर हम कह सकते हैं कि मौलिक रूप से सनातन हिंदूवादी इस भारतीय परम्परा के जीवन्तता को बनाये रखने का संकल्प सच में कोविड-19 यह पहला अनुपम संदेश है |

 व्यकिगत अनुभव के आधार पर मैं कहना चाहूँगी कि विगत लंबे समय तक चले लॉक-डाउन में... आधुनिक विकास के मॉल, बिग-बाजार, मेट्रो, फैक्ट्री आदि सबको सुरक्षा के दृष्टिकोण से बंद किया गया | फिर भी अनाज, फल, दूध, सब्जी, अन्य जीवन रक्षक सामग्रियों का उत्पादन और इसका सभी क्षेत्रों (गाँवों, कस्बों से लेकर शहरों) में वितरण निरंतर होता रहा है| जो हमारे कुटीर, लघु, मध्यम उद्योगों तथा खुदरा व्यपारियों, ठेला- रेहड़ी वालों की उद्यमशीलता का परिचायक है | इसलिए इस सेक्टर को अधिक से अधिक विकसित करने का... यह दूसरा सुधारवादी संदेश हमें कोविड-19 देती है |

 कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग , सेनीटाईजेशन , मास्क लगाकर बाहर निकलना, साबुन से बराबर हाथ की सफाई करना , गर्म पानी का सेवन करना तथा इम्युनिटी बढाने जैसे कई महत्वपूर्ण बातें उभर कर हमारे सामने आई है | इन सभी चीजों को स्थायी रूप से अपने जीवन में शामिल किया जाय .... कोविड-19 का यह तीसरा महत्वपूर्ण संदेश है | 

 इस दौरान, सभी नदियों का दूषित जल अपने-आप साफ़ हो गया |आसमान स्वच्छ दिखने लगा |जानकारी के अनुसार नदियों में मछली, डालफिन तथा अन्य फौना के संबर्धन परिलक्षित हुए हैं |कई जगहों से हिमालय की बर्फीली श्रृंखला का दीदार हुआ | प्रदुषण मुक्त वातावरण हो, ऐसी स्थिति हमारे राष्ट्रीय नीति में स्थायी रूप से शामिल किया जाय... कोविड—19 का यह चौथा अनुपम संदेश है | 

 एक और अहम् बात , इस कोरोना काल में , ‘योग-ध्यान और आयुर्वेद’ एक वैकल्पिक चिकित्सा के रूप में वैश्विक स्तर पर मान्य हुआ है | भारत नहीं पुरे विश्व में सहस्त्रों वर्ष पुरानी योग-आयुर्वेद की परम्परा को अधिक उपयोग में लाया जाय ... कोविड-19 का यह पांचवा चिकित्सीय संदेश है | 

 लॉक डाउन में सफाईकर्मी , डॉक्टर,नर्स, पुलिसकर्मी का भी अतुल्य योगदान रहा है | ये सभी योद्धा की तरह जान जोखिम में डालकर नित्य लोगों की सेवा में समर्पित हैं | निःसंदेह सभी बधाई और अभिनंदन के पात्र हैं | 

 मैं अपनी बात बताती हूँ ,मैंने लॉक डाउन को बहुत सकारात्मक रूप से लिया | कामवाली को आने से मना करने के बाद, घर के कामों को कभी बोझ नहीं समझी | हाँ, शुरू में कुछ अबुह जरुर लगा, पर बाद में सब सामान्य हो गया | पति से भी पूरा सहयोग मिला | यदि परिवार में सभी की सहभागिता की यह परिपाटी स्थायी बन जाय, तो हम कामवाली के बिना भी आराम से घरेलू कामों को निपटा सकते हैं | 


 इस दौरान एक बड़ी उपलब्धी मुझे मिली | अपने फ़्लैट की पांच महिलाओं को मैंने योग-प्राणायम सिखलाया | सोशल डिस्टेंस के नियम का पालन करते हुए, नित्य शाम के समय छत पर...मैंने उनलोगों को योग-प्राणायम सिखलाया |एक महीने के बाद सभी महिलाओं ने कहा, “प्राणायाम से स्वास्थ्य में बहुत लाभ हुआ |” जब सभी ने शारीरिक व्याधि कम होने की बात बताई, तो सुनकर मैं आनंद विभोर हो गई |

 मैं योगा ट्रेनर नहीं हूँ , लेकिन योग-प्राणायाम मेरी दिनचर्या में शामिल है | इससे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में अत्यधिक लाभ होता है,यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव रहा है |

 मिन्नी मिश्रा /पटना